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बुधवार, 19 जून 2013

ख़ुदा गवाह किया !

नज़्म   कह   के   बड़ा   गुनाह   किया
शैख़   साहब   का   घर   तबाह  किया

उसको  मंज़िल  ने   हाथों-हाथ  लिया
जिसको  हमने  शरीक़-ए-राह  किया

कौन    सिखलाएगा    वफ़ा     हमको
हमने   घर   बेच   के    निबाह  किया

तेरी    यादों    से    घर     दहक़ता   था
दश्त-ओ-सहरा  को  ख़्वाबगाह  किया

चैन    पाते    तो    किस    तरह    पाते
दुश्मन-ए-जां   को    ख़ैरख़्वाह    किया

शान-ओ-शौक़त    लुटाई    यूं   हमने
अपने    दिल    को  जहांपनाह  किया

सुर्ख़रू:    क्यूं     भला    न    हम  होते
हर    क़दम   पे   ख़ुदा   गवाह   किया।

                                                ( 2013 )

                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: शैख़ साहब: धार्मिक व्यक्ति; शरीक़-ए-राह: सहयात्री; दश्त-ओ-सहरा: वन और मरुस्थल; ख़्वाबगाह: सोने का स्थान, विश्रामालय; ख़ैरख़्वाह: शुभचिंतक; शान-ओ-शौक़त: ऐश्वर्य और समृद्धि; जहांपनाह: सब को आश्रय देने वाला, राजसी स्वभाव का; सुर्ख़रू: : सफल।

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