ख़ुदा क़सम मैं हुस्न-ए-जां से बेनियाज़ नहीं
मगर वो: शख़्स मेरी तरह दिल-नवाज़ नहीं
वो: मयफ़रोश निगाहों से जाम भरता है
शह्र की आब-ओ-हवा में ये: बात राज़ नहीं
सबा-ए-सहर में शामिल है भैरवी की ख़ुनक़
ये: सुरबहार-ए-अज़ाँ यार-ए-मन है साज़ नहीं
हक़ीक़तन वो: मेरे दिल को छू के गुज़रा है
मगर ख़्याल है वो: सूरत-ए-मजाज़ नहीं
तेरे शहर को ख़ैरबाद कह चले ऐ दोस्त
यहाँ दुआ - सलाम रस्म है रिवाज़ नहीं।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
मगर वो: शख़्स मेरी तरह दिल-नवाज़ नहीं
वो: मयफ़रोश निगाहों से जाम भरता है
शह्र की आब-ओ-हवा में ये: बात राज़ नहीं
सबा-ए-सहर में शामिल है भैरवी की ख़ुनक़
ये: सुरबहार-ए-अज़ाँ यार-ए-मन है साज़ नहीं
हक़ीक़तन वो: मेरे दिल को छू के गुज़रा है
मगर ख़्याल है वो: सूरत-ए-मजाज़ नहीं
तेरे शहर को ख़ैरबाद कह चले ऐ दोस्त
यहाँ दुआ - सलाम रस्म है रिवाज़ नहीं।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
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