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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

पारसा बना डाला !

ख़ाक  ले  कर  ख़ुदा  बना  डाला
ज़ौक़े-इंसां ! ये  क्या  बना  डाला ?!

दुश्मनों  ने  सलाम  को  अपने
दिलकशी  की  अदा  बना  डाला

लाख  हरजाई  वो  रहा  हो  यूं
वक़्त  ने  पारसा  बना  डाला

इश्क़  पर  शे'र  जो  कहा  हमने
आशिक़ों  ने  दुआ  बना  डाला

शैख़  पीने  चले  मुरव्वत  में
मयकशों  को  बुरा  बना  डाला

ख़ूब  माशूक़  था  कन्हैया  वो
ज़ह् र  को  भी  दवा  बना  डाला

शाह  कमज़र्फ़  नहीं  तो  क्या  है
मुफ़लिसों  को  गदा  बना  डाला !

उम्र  भर  नाम  गुम  रहा  अपना
मौत  ने  मुद्द'आ  बना  डाला  !

                                                            (2014)

                                                   -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़ाक: मिट्टी, धूल; ख़ुदा: भगवान की मूर्त्ति; ज़ौक़े-इंसां: मानवीय सुरुचि; दिलकशी: चित्ताकर्षण; अदा: मुद्रा; 
हरजाई: हर किसी से प्रेम करते रहने वाला, दुश्चरित्र; पारसा: सदाचारी, संयमी;  दुआ: प्रार्थना; शैख़: ईश्वर-भीरु; 
मुरव्वत: संकोच, भलमनसाहत; मयकशों: मद्यपों; माशूक़: प्रिय; कमज़र्फ़: ओछा व्यक्ति; मुफ़लिसों: निर्धनों;  
गदा: भिक्षुक; मुद्द'आ: चर्चा का विषय। 

बुधवार, 27 अगस्त 2014

ख़्वाब की ताबीर

क्यूं  न  हम  आपको  तहरीर  बना  कर  रख  लें
ख़्वाब  में  आएं  कि  तस्वीर  बना  कर  रख  लें

आप  महफ़ूज़  हैं  नज़्रों  में  हमारी  यूं  तो
या  कहें,  ख़्वाब  की  ताबीर  बना  कर  रख  लें

क़ैद  में  क्यूं  रहें  अश्'आर  दिवाने  दिल  की
क्या  ख़यालात  की  ज़ंजीर   बना  कर  रख  लें ?

घर  की  हालत  ही  नहीं  आपको  बुलाने  की
दिल  तो  करता  है  कि  दिलगीर  बना  कर  रख  लें

सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई  नहीं  कम  होती
लाख  बोतल  को  बग़लगीर  बना  कर  रख  लें

और  भी  लोग  शहर  में  हैं  अना  के  आशिक़
आप  भी  सामां-ए-तौक़ीर  बना  कर  रख  लें  !

लोग  पढ़ते  हैं  तिरा  नाम  वज़ीफ़ों  की  तरह
हम  भी  इक  नुस्ख:-ए-तस्ख़ीर  बना  कर  रख  लें ?!

                                                                                     (2014)

                                                                              -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: तहरीर: लेख, लिखावट; महफ़ूज़: सुरक्षित; अश्'आर: शे'र का बहुवचन; ख़यालात: विचारों; दिलगीर:मन को पकड़ कर रखने वाला; सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई : अकेलेपन के प्राण निकलने की कठिनाइयां, अर्थात, एकांत के समाप्त होने की कठिनाइयां; बग़लगीर: सदा पार्श्व में रहने वाला; अना  के  आशिक़: अहंकार-प्रेमी; सामां-ए-तौक़ीर: प्रतिष्ठा की वस्तु; वज़ीफ़ों: चमत्कारी मंत्रों; नुस्ख:-ए-तस्ख़ीर: वशीकरण का उपाय। 

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

...ख़ैरात चुरा लेते हैं !

मिरे ज़ेह् न  से  ख़्यालात  चुरा  लेते  हैं
दोस्त  हैं, क्या  कहें, जज़्बात  चुरा  लेते  हैं

हद  तो  ये  है, कहीं  इल्ज़ाम  नहीं  है  उन  पर
लोग  अक्सर  तसव्वुरात  चुरा  लेते  हैं

उनसे  उम्मीद  न  रखिए  जवाबदेही  की
दिल  में  उठते  ही  सवालात  चुरा  लेते  हैं

शो'अरा-ए-वक़्त  की  परवाज़  बहुत  ऊंची  है
मीर-ओ-ग़ालिब  के  भी  क़त्'आत  चुरा  लेते  हैं

ख़ूब  अल्लाह  ने  यारों  को  हुनर  बख़्शा  है
दिल  में  आए  बग़ैर  बात  चुरा  लेते  हैं

ये  जो  हाकिम  हैं,  इन्हें  काश!  ख़ुदा  का  डर  हो
हरम-ओ-दैर  से  ख़ैरात  चुरा  लेते  हैं

आप  हर  वक़्त  उदासी  में  घिरे  रहते  हैं
आज  हम  आपके  सदमात  चुरा  लेते  हैं  !

                                                                              (2014)

                                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ज़ेह् न: मस्तिष्क; ख़्यालात: विचार(बहु.); जज़्बात: भावनाएं; इल्ज़ाम: आरोप; तसव्वुरात: कल्पनाएं; जवाबदेही: उत्तरदायित्व;  सवालात: प्रश्न(बहु.); शो'अरा-ए-वक़्त: इस समय के शायर(बहु.); परवाज़: उड़ान; हज़रत मीर तक़ी मीर और हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; क़त्'आत: चतुष्पदियां; हुनर: कौशल; हाकिम: शासक, अधिकारीगण; हरम-ओ-दैर: मस्जिद और मंदिर; 
ख़ैरात: दान-पुण्य की राशि; सदमात: मन पर पड़े आघात। 

 

सोमवार, 25 अगस्त 2014

ख़ज़ाना चुरा लिया...?

लीजिए,  सर  झुका  लिया  हमने
हसरतों  को   मिटा  लिया  हमने

चांद  कासा  लिए  भटकता   था
नूर  दे  कर  जिला  लिया  हमने

ख़्वाब  दर  ख़्वाब  का  सफ़र  करके
आपका  अक्स  पा  लिया  हमने 

शोर   सुनते  हुए  तरक़्क़ी  का
जोश  में  घर  जला  लिया  हमने

शाह  किस  बात  से  परेशां  है
क्या  ख़ज़ाना  चुरा  लिया  हमने ?

आप  नासेह,    देर    से    आए
जाम  से  मुंह  लगा  लिया  हमने

मल्कुले-मौत  ख़ाक  से  ख़ुश  है
और  ईमां  बचा  लिया  हमने  !

                                                                     (2014)

                                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: हसरतों: इच्छाओं; कासा: भिक्षा-पात्र; नूर: प्रकाश; अक्स: प्रतिबिंब, रूप; तरक़्क़ी: विकास, प्रगति; नासेह: सीख देने वाला; 
जाम: मदिरा-पात्र;  मल्कुले-मौत: मृत्यु-दूत; ख़ाक: धूल, मिट्टी, मृत शरीर; ईमां: आस्था।




रविवार, 24 अगस्त 2014

हमारा वज़ीफ़ा...

उठाना-गिराना  रईसों  की  बातें 
ख़ुलूसो-मुहब्बत  ग़रीबों  की  बातें

सियासत  तुम्हारी  महज़  क़त्लो-ग़ारत
अदब-मौसिक़ी-फ़न  शरीफ़ों  की  बातें

तुम्हारे  ज़ेह् न   तक  नहीं  आ  सकेंगी
ये   बारीक़  बातें,   अदीबों  की  बातें

न  दीजे  हमें  आप  जागीर-ओ-मनसब
हमारा   वज़ीफ़ा     हसीनों   की  बातें

बह्र   मुख़्तसर-सी   कहां  तक  संभाले
ग़मे-आशिक़ी  के  महीनों  की  बातें

करें  शुक्रिया  किस  तरह  आपका  हम
सुनी  ग़ौर  से  कमनसीबों  की  बातें

हमें  भी  कहां  रास  आईं  किसी  दिन
किताबे-ख़ुदा  की,  नसीबों  की  बातें  !

                                                                   (2014)

                                                           -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़ुलूसो-मुहब्बत: आत्मीयता और प्रेम; सियासत: राजनीति; महज़: मात्र;  क़त्लो-ग़ारत: हत्या और मार-काट; अदब-मौसिक़ी-फ़न: साहित्य, संगीत और कला; ज़ेह् न : मानसिकता, मस्तिष्क; बारीक़: सूक्ष्म;अदीबों: साहित्यकारों;   
जागीर-ओ-मनसब: राज्य से मिली कर-मुक्त भूमि और उच्चाधिकार वाला पद;   वज़ीफ़ा: निर्वाह-वृत्ति; बह्र: छंद;  मुख़्तसर: संक्षिप्त; ग़मे-आशिक़ी: प्रेम के दु:ख; कमनसीबों: भाग्यहीनों; किताबे-ख़ुदा: ईश्वरीय पुस्तक, पवित्र क़ुर'आन; भाग्य, भाग्यवाद।

शनिवार, 23 अगस्त 2014

... बुरी बात है !

दोस्तों  को  सताना  बुरी  बात  है
ख़्वाब  में  रूठ  जाना  बुरी  बात  है !

भूलना  एक  वादा  अलग  बात  है
आए  दिन  ये  बहाना  बुरी  बात  है

हम  शरारत  से  तुमको  नहीं  रोकते
हां,  मगर  दिल  जलाना  बुरी  बात  है

दोस्तों  से  कहो,  कुछ  मुदावा  करें
दर्द  दिल  में  बसाना  बुरी  बात  है

पुख़्तगी-ए-अहद  चाहिए  इश्क़  को
राह  में  लड़खड़ाना  बुरी  बात  है

शाह  का  फ़र्ज़  है  मुल्क  की  बेहतरी
नफ़रतों  को  बढ़ाना  बुरी  बात  है

हक़परस्तों, उठो  !  सरकशी  के  लिए
ज़ुल्म  पर  सर  झुकाना  बुरी  बात  है !

                                                               (2014)

                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मुदावा: उपचार; पुख़्तगी-ए-अहद: संकल्प की दृढ़ता; हक़परस्तों:न्याय-समर्थकों; सरकशी: विद्रोह।

... बुरी बात है !

दोस्तों  को  सताना  बुरी  बात  है
ख़्वाब  में  रूठ  जाना  बुरी  बात  है !

भूलना  एक  वादा  अलग  बात  है
आए  दिन  ये  बहाना  बुरी  बात  है

हम  शरारत  से  तुमको  नहीं  रोकते
हां,  मगर  दिल  जलाना  बुरी  बात  है

दोस्तों  से  कहो,  कुछ  मुदावा  करें
दर्द  दिल  में  बसाना  बुरी  बात  है

पुख़्तगी-ए-अहद  चाहिए  इश्क़  को
राह  में  लड़खड़ाना  बुरी  बात  है

शाह  का  फ़र्ज़  है  मुल्क  की  बेहतरी
नफ़रतों  को  बढ़ाना  बुरी  बात  है

हक़परस्तों, उठो  !  सरकशी  के  लिए
ज़ुल्म  पर  सर  झुकाना  बुरी  बात  है !

                                                               (2014)

                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मुदावा: उपचार; पुख़्तगी-ए-अहद: संकल्प की दृढ़ता; हक़परस्तों:न्याय-समर्थकों; सरकशी: विद्रोह।