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मंगलवार, 26 अगस्त 2014

...ख़ैरात चुरा लेते हैं !

मिरे ज़ेह् न  से  ख़्यालात  चुरा  लेते  हैं
दोस्त  हैं, क्या  कहें, जज़्बात  चुरा  लेते  हैं

हद  तो  ये  है, कहीं  इल्ज़ाम  नहीं  है  उन  पर
लोग  अक्सर  तसव्वुरात  चुरा  लेते  हैं

उनसे  उम्मीद  न  रखिए  जवाबदेही  की
दिल  में  उठते  ही  सवालात  चुरा  लेते  हैं

शो'अरा-ए-वक़्त  की  परवाज़  बहुत  ऊंची  है
मीर-ओ-ग़ालिब  के  भी  क़त्'आत  चुरा  लेते  हैं

ख़ूब  अल्लाह  ने  यारों  को  हुनर  बख़्शा  है
दिल  में  आए  बग़ैर  बात  चुरा  लेते  हैं

ये  जो  हाकिम  हैं,  इन्हें  काश!  ख़ुदा  का  डर  हो
हरम-ओ-दैर  से  ख़ैरात  चुरा  लेते  हैं

आप  हर  वक़्त  उदासी  में  घिरे  रहते  हैं
आज  हम  आपके  सदमात  चुरा  लेते  हैं  !

                                                                              (2014)

                                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ज़ेह् न: मस्तिष्क; ख़्यालात: विचार(बहु.); जज़्बात: भावनाएं; इल्ज़ाम: आरोप; तसव्वुरात: कल्पनाएं; जवाबदेही: उत्तरदायित्व;  सवालात: प्रश्न(बहु.); शो'अरा-ए-वक़्त: इस समय के शायर(बहु.); परवाज़: उड़ान; हज़रत मीर तक़ी मीर और हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; क़त्'आत: चतुष्पदियां; हुनर: कौशल; हाकिम: शासक, अधिकारीगण; हरम-ओ-दैर: मस्जिद और मंदिर; 
ख़ैरात: दान-पुण्य की राशि; सदमात: मन पर पड़े आघात। 

 

1 टिप्पणी:

  1. ख़ूब अल्लाह ने यारों को हुनर बख़्शा है
    दिल में आए बग़ैर बात चुरा लेते हैं
    ...वाह...बहुत उम्दा ग़ज़ल...

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