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शुक्रवार, 20 मार्च 2015

... इज़्हार का मौसम !

अभी  इज़्हार  का  मौसम  नहीं  है
नई  तकरार  का  मौसम  नहीं  है

लगाएं क्या गले से हम किसी  को 
विसाले-यार  का  मौसम  नहीं  है

नए   हथियार   लेकर    आइएगा
नज़र के  वार का मौसम  नहीं  है 

तिजारत आप दिल की क्या करेंगे
यहां  बाज़ार   का  मौसम  नहीं  है

तरक़्क़ी   के    कई   वादे   हुए  थे
कहीं  रफ़्तार  का  मौसम  नहीं  है

लगा  है   ख़ूं  ज़ुबां  पर  दोस्तों  की
किसी से प्यार का मौसम  नहीं  है

कहेंगे नज़्म तुम पर फिर कभी हम
दिले-बेज़ार   का   मौसम  नहीं  है

खुले     ख़ंजर     ज़ुबानें    ढूंढते  हैं
कड़ी  गुफ़्तार  का  मौसम  नहीं  है

सिपहसालार  सोचें  शाह  के  अब
हमारी  हार  का  मौसम   नहीं  है

मियां मुफ़्ती ! ज़रा सर को संभालो
हरी  दस्तार  का  मौसम  नहीं  है  !

                                                                (2015)

                                                        -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: इज़्हार:अभिव्यक्ति; तकरार: विवाद; विसाले-यार: प्रिय से मिलन; तिजारत: व्यापार; तरक़्क़ी:प्रगति; वादे: संकल्प; रफ़्तार: गति;  ख़ूं: रक्त; नज़्म: गीत; दिले-बेज़ार: व्यथित हृदय; ख़ंजर: चाक़ू; गुफ़्तार: बातचीत; सिपहसालार: सेनापति; मुफ़्ती: धर्माधिकारी, धार्मिक व्यवहार पर राय देने वाला; दस्तार: पगड़ी ।