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बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

रूह में सुबह रखना ...

क़ल्ब   में  दर्द  की  जगह  रखना
विसाले-यार   की   वजह  रखना

नज़र  में  आएंगे   अंधेरे   भी
बचा  के  रूह  में  सुबह  रखना

शह्र   के  रंग-ढंग  ठीक  नहीं
ज़रा  आमाल  पर  निगह  रखना

वो  आ  रहे  हैं  फ़ैसला  करने
दिलो-दिमाग़  में  सुलह  रखना

कभी  न  ख़ुश्क  हों  हसीं  आंखें
बचा  के  अश्क  इस  तरह  रखना

उतर  रहे  हो  जंगे-ईमां  में
ज़ेह्न  में  जज़्ब:-ए-फ़तह  रखना

अभी  हैं  राह  में,  पहुंचते  हैं
ख़ुदा  से  आप  ज़रा  कह  रखना !

                                                                (2014)

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: क़ल्ब: हृदय; विसाले-यार: प्रिय से मिलन; वजह: कारण; रूह: आत्मा, अंतर्मन; शह्र: शहर, नगर; आमाल: आचरण; 
निगह: निगाह का लघु, दृष्टि; दिलो-दिमाग़: मन-मस्तिष्क; सुलह: समझौते की भावना; ख़ुश्क: शुष्क; जंगे-ईमां: निष्ठा का/ वैचारिक युद्ध; ज़ेह्न: मस्तिष्क, ध्यान; जज़्ब:-ए-फ़तह: विजय का भाव।