सब्र कर या खुली बग़ावत कर
अपने एहसास की हिफ़ाज़त कर
शाह से दोस्ती नहीं मुमकिन
क्यूं न सच बोल कर अदावत कर
हो रहे दुश्मनी हुकूमत से
आज हकदार की हिमायत कर
ज़ुल्म सहना भी ज़ुल्म है ख़ुद पर
ज़ालिमों के ख़िलाफ़ हिम्मत कर
सरज़मीने-सुख़न तेरा हक़ है
इस जगह सिर्फ़ बादशाहत कर
रिज़्क़ छूते नहीं गदाई का
तू किसी और पर इनायत कर
देख, हम आस्मां बनाते हैं
अब तेरा ज़र्फ़, तू क़यामत कर !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सब्र: धैर्य; बग़ावत: विद्रोह; एहसास: संवेदना; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; अदावत : शत्रुता; हुकूमत: शासन; हक़दार : न्याय संगत पात्र, अधिकारी; हिमायत : पक्षधरता; ज़ुल्म : अन्याय; ज़ालिमों : अन्यायियों; ख़िलाफ़: विरुद्ध; हिम्मत : साहस; सरज़मीने-सुख़न: सृजन-क्षेत्र, सृजन-संसार; बादशाहत : राज; रिज़्क़: भोजन; गदाई: भिक्षा-वृत्ति; इनायत : कृपा; आस्मां : आकाश, सृष्टि; ज़र्फ़: गंभीरता, सामर्थ्य; क़यामत : प्रलय ।
अपने एहसास की हिफ़ाज़त कर
शाह से दोस्ती नहीं मुमकिन
क्यूं न सच बोल कर अदावत कर
हो रहे दुश्मनी हुकूमत से
आज हकदार की हिमायत कर
ज़ुल्म सहना भी ज़ुल्म है ख़ुद पर
ज़ालिमों के ख़िलाफ़ हिम्मत कर
सरज़मीने-सुख़न तेरा हक़ है
इस जगह सिर्फ़ बादशाहत कर
रिज़्क़ छूते नहीं गदाई का
तू किसी और पर इनायत कर
देख, हम आस्मां बनाते हैं
अब तेरा ज़र्फ़, तू क़यामत कर !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सब्र: धैर्य; बग़ावत: विद्रोह; एहसास: संवेदना; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; अदावत : शत्रुता; हुकूमत: शासन; हक़दार : न्याय संगत पात्र, अधिकारी; हिमायत : पक्षधरता; ज़ुल्म : अन्याय; ज़ालिमों : अन्यायियों; ख़िलाफ़: विरुद्ध; हिम्मत : साहस; सरज़मीने-सुख़न: सृजन-क्षेत्र, सृजन-संसार; बादशाहत : राज; रिज़्क़: भोजन; गदाई: भिक्षा-वृत्ति; इनायत : कृपा; आस्मां : आकाश, सृष्टि; ज़र्फ़: गंभीरता, सामर्थ्य; क़यामत : प्रलय ।