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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

हैं गुनहगार हम ...

हैं  गुनहगार   हम    ज़माने  के
वक़्त  को   आइना  दिखाने  के

आपको  कुछ  गिला  नहीं  हमसे
खेल  हैं  ये:    महज़    सताने  के

रूठ  जाएं    मगर     ख़याल  रहे
हम  भी   उस्ताद  हैं   मनाने  के

मश्क़   करते  रहें    निभाने  की
दिन  मुबारक   क़रीब  आने  के

दर्द  दिल  के  सहेज  कर  रखिए
ये:   नहीं   बज़्म  को  सुनाने  के

कीजिए  कुछ  जतन  मियां  वाइज़
मैकदे   में     हमें       बुलाने  के

बुत    हमारा     बना  रहे  हैं   वो:
जो  मुहाफ़िज़  हैं  क़त्लख़ाने  के  !

                                               ( 2013 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: गुनहगार: अपराधी; गिला: आक्षेप; महज़: मात्र; मश्क़: अभ्यास; मुबारक: शुभ हों; बज़्म: सभा, गोष्ठी; 
जतन: यत्न; वाइज़: धर्मोपदेशक; मदिरालय; बुत: मूर्त्ति; मुहाफ़िज़: संरक्षक; क़त्लख़ाना: वध-गृह। 

बारिशे-जज़्बात... !

अल्फ़ाज़  में  वो:  बात  नज़र  आती  नहीं  हमें
राहत  की   नर्म  रात    नज़र  आती  नहीं  हमें

हसरत  से     देखते  हैं     आजकल   दरे-हबीब
उम्मीदे- मुलाक़ात       नज़र   आती  नहीं  हमें

मग़रिब  हुई  के:  बुझ  गए  दिल  के  सभी  चराग़
अब    नूर  की  सौग़ात   नज़र  आती  नहीं  हमें

वो:    सोज़े - आशनाई   में    भीगे    हुए  ख़याल
वो:    बारिशे-जज़्बात    नज़र   आती  नहीं  हमें

इस    दौरे-मुश्किलात    की   रुस्वाइयों  से  अब
आसां     रहे - निजात    नज़र   आती  नहीं  हमें

लड़ते     रहेंगे     ज़ौरो - जब्र    के     निज़ाम  से
जब  तक  के:  तेरी  मात  नज़र  आती  नहीं  हमें

मुद्दत    से     मुंतज़िर   हैं     कोहे-तूर  पे    मगर
जल्वों  की     करामात     नज़र  आती  नहीं  हमें  !

                                                                    ( 2013 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द (बहु.); दरे-हबीब: प्रिय का द्वार; उम्मीदे- मुलाक़ात: भेंट की आशा; मग़रिब: सूर्यास्त; 
नूर  की  सौग़ात: प्रकाश का उपहार; सोज़े - आशनाई: स्नेह का माधुर्य;  बारिशे-जज़्बात: भावनाओं की वर्षा; 
दौरे-मुश्किलात: कठिनाइयों का समय; रुस्वाइयों: अपमानों; आसां  रहे-निजात: मुक्ति का सरल मार्ग; ज़ौरो- जब्र: अत्याचार और बलात कृत्य; निज़ाम: शासन; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; कोहे-तूर: अंधकार का पर्वत; जल्वों  की करामात: ( ईश्वर के ) दर्शन का चमत्कार।