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रविवार, 20 मार्च 2016

मेहमान की अदा ...

किस-किसके  ग़म  उठाए,  जिए  और  मर  गए
अपना  हिसाब  पढ़  के  फ़रिश्ते  भी  डर  गए

है  इब्तिदाए-इश्क़  कि  मेहमान  की  अदा
जो  मेज़बां  के  साथ  सुबह  तक  ठहर  गए

तन्हा  हुए  तो  ख़ुद  के  लिए  वक़्त  मिल  गया
वरना  तो  उनके  साथ  ज़माने  गुज़र  गए

हर  दम  हमारे  साथ  यही  हादसा  हुआ
सब  दिल  के  ख़रीदार  नज़र  से उतर  गए

क्या  ख़ूब  बज़्म  थी  कि  सभी  हमक़दह  मिरे
पीकर  मिरी  शराब  मशाईख़  के  घर  गए

किसको  बताएं  हम  कि  शबे-क़त्ल  क्या  हुआ
किरदारे-ख़्वाब  नींद  से  उठ  कर किधर  गए

क़ाफ़िर  सही  प'  दिल  में  तमन्ना  ज़रूर  है
देखेंगे  तिरा  घर  भी  मदीने  अगर  गए  !

                                                                                 (2016)

                                                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: फ़रिश्ते : देवदूत; इब्तिदाए-इश्क़ : प्रेमारंभ ; मेज़बां : गृहस्वामी ; तन्हा : अकेले ; हादसा : दुर्घटना ; ख़रीदार : ग्राहक ; नज़र : दृष्टि ; बज़्म : गोष्ठी ; हमक़दह : एक ही पात्र से मदिरा-पान करने वाले ; मशाईख़ : शैख़ का बहुव., पीर, धर्म-भीरु, ब्रह्म-ज्ञानी, आदि; शबे-क़त्ल : हत्या की रात्रि ; किरदारे-ख़्वाब : स्वप्न के पात्र/ चरित्र ; क़ाफ़िर : नास्तिक ; तमन्ना : इच्छा ।