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गुरुवार, 13 जून 2019

ख़ुदा से अदावत...

अगर  होश  क़ायम  रहेगा  हमारा
जिएंगे  मगर  दिल  जलेगा  हमारा

ख़ुदा  से  अदावत  निभाते  रहे  हम
 यहां  कौन   दुश्मन   बनेगा  हमारा

जिधर  सुर्ख़  परचम  इशारा  करेगा
उधर  ख़ूं   छलकता  मिलेगा  करेगा

जहां  शाहे-वहशत  अकेला  ख़ुदा  हो
असर  तो   वहां  भी   दिखेगा  हमारा

यक़ीनन    वहीं    नूरे-अल्लाह   होगा
जहां  ख़ुद  ब  ख़ुद  सर  झुकेगा  हमारा  !

                                                            (2019)

                                                        - सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: क़ायम : स्थिर; अदावत : शत्रुता; सुर्ख़ : लाल; परचम : ध्वज, झंडा ;
 ख़ूं : रक्त ; शाहे-वहशत : उन्माद का राजा ; यक़ीनन : अंततः ; नूरे-अल्लाह : ईश्वरीय प्रकाश ।

1 टिप्पणी:


  1. जहां शाहे-वहशत अकेला ख़ुदा हो
    असर तो वहां भी दिखेगा हमारा
    (बढिया )

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