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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

दिल में उतर के देखो...

1.  नया  निज़ाम   है,   झुक-झुक  के  एहतेराम  करो
     न  सर  उठे  न  निगह,    इस  तरह  सलाम  करो

2. चुना  था  मुल्क  ने  तो  तुम भी   हक़  अदा  करते
    ये:   कैसा  फ़र्ज़    के:  जीना  तलक    हराम  करो

3. अदीब  हो   तो  किसी  दिल  में    उतर  के   देखो
   ये: क्या सितम   के: सियासत में  सुब्ह-शाम  करो

4. तुम्हारा  हुस्न    जहां  को    ख़ुदा  की   नेमत  है
    तुम्हें  ये:  ज़ेब  नहीं  है   के:  क़त्ल-ए-आम  करो

5. बदल   रहे    हैं   वो:     सारे  जहान   की    सूरत
    उठो  मियां,    नई   दुनिया  का    इंतेज़ाम   करो !

                                                             ( 2003/2013)

                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

सन्दर्भ: 1. उमा भारती के म. प्र. के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उनके क्रिया-कलाप पर 
            2. डॉ . मनमोहन सिंह के अमेरिका-परस्त पूंजीवादी तौर-तरीक़ों  पर 
            3. अटल  जी  की  काव्य-पुस्तिका  के  प्रकाशन  पर 
            4/5. सोनिया-मनमोहन की जुगलबंदी में आम आदमी की विरोधी आर्थिक नीतियों पर 

शब्दार्थ: निज़ाम: प्रशासन; एहतेराम: सम्मान; अदीब: साहित्यकार; नेमत: देन; ज़ेब: उचित, शोभा देना