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रविवार, 20 अक्तूबर 2013

वारदात बाक़ी है !

रंजो-ग़म  से  निजात  बाक़ी  है
क्यूं  ये:    क़ैदे-हयात   बाक़ी  है

कोई  हमदर्द    आसपास   नहीं
दुश्मनों  की   जमात  बाक़ी  है

एक  हम  ही    नहीं  रहे   बाक़ी
कुल  जमा  कायनात  बाक़ी  है

क़त्लो-ग़ारत  ज़िना-ओ-बदकारी
कौन  सी    वारदात     बाक़ी  है

मौत  कमबख़्त     रास्ते  में  है
और  बदबख़्त    रात  बाक़ी  है

शाह  बे-ख़ौफ़  चाल  चलता  है
पैदली  शह-ओ-मात  बाक़ी  है

उस  गली  पे  ख़ुदा  का  साया  है
जिस गली  में  निशात  बाक़ी  है !

                                               ( 2013 )

                                         -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: निजात: मुक्ति; क़ैदे-हयात: जीवन-रूपी कारावास; हमदर्द: पीड़ा बंटाने वाला; जमात: समूह; कुल जमा  कायनात: समग्र सृष्टि; हत्या और हिंसा; ज़िना-ओ-बदकारी: बलात्कार और दुष्कर्म; वारदात: आपराधिक घटना; कमबख़्त:हतभाग्य; बदबख़्त:अभागी;  
बे-ख़ौफ़: निर्द्वन्द्व; पैदली  शह-ओ-मात: पैदल सेना की चुनौती और विरोधी राजा की हार;  साया: छाँव; निशात: हर्ष।