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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

जो पीरों में न होंगे ....


हमारे  अश्क   जिस  दिन   आपकी   आँखों  में  आएंगे
जहाँ  में   हों  न  हों   हम   आपके   ख़्वाबों   में  आएंगे

अभी   है   इब्तिदा-ए-इश्क़   दिल  के  दाग़   क्या  देखें
न   जाने    और   कितने     हादसे    राहों   में    आएंगे

अभी  हम  कनख़ियों  से  देखते  हैं   उनको  हसरत  से
कभी  वो:  दिन  भी  आएगा  के: हम  नज़रों  में आएंगे

तेरे   रुख़सार   की  लौ  में   झुलस  कर  तोड़ते  हैं   दम
ये:   परवाने    जहाँ    देखो     वहीं   क़दमों   में   आएंगे 

ये: दिल के ज़ख्म  हैं साहब  छिपाएं  भी तो किस  तरह
जो   अश्कों   में   न  उतरें   तो  मेरे   नग़मों  में  आएंगे

तेरे   आशिक़   तो   तारीख़   में   अपनी  जगह  तय  है
जो   पीरों   में    न   होंगे    तो   तेरे   बन्दों  में   आएंगे।

                                                                      (2003)

                                                       -सुरेश  स्वप्निल