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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

ख़ुदा नहीं देंगे !

'दिल न देंगे', 'दुआ नहीं देंगे'
और बतलाएं, क्या नहीं देंगे !

जान देंगे मगर करीने से
आपको मुद्द'आ नहीं देंगे

देख ली आपकी वफ़ा हमने
दिल कभी आईंदा नहीं देंगे

ख़ूब हैं चार:गर हमारे भी
दर्द देंगे, दवा नहीं देंगे

ख़्वाब की खिड़कियां खुली रखिए
क्या हमें रास्ता नहीं देंगे ?

और कुछ दें, न दें गुज़ारिश है
आप अब फ़लसफ़ा नहीं देंगे

शाह अब अर्श पर मकां कर ले
हम ज़मीं को सज़ा नहीं देंगे

बेईमां हों अगर सियासतदां
कौन-से दिन दिखा नहीं देंगे


हो सके तो हमें मिटा देखें
.खौफ़ से तो ख़ुदा नहीं देंगे !

                                                                 (2015)

                                                           -सुरेश स्वप्निल 

शब्दार्थ: करीने से: व्यवस्थित रूप से; मुद्द'आ: टिप्पणी करने का अवसर, विषय; वफ़ा: निष्ठा; आईंदा: आज के बाद; चार:गर: उपचारक; गुज़ारिश: अनुरोध; फ़लसफ़ा: दर्शन, कोरे आश्वासन, झांसा; अर्श: आकाश, स्वर्ग;   मकां: आवास, गृह; ज़मीं: पृथ्वी; सज़ा: दंड; 
बेईमां: निष्ठाविहीन; सियासतदां: राजनीति करने वाले; .खौफ़: भय ।