न दिल रहेगा, न जां रहेगी
रहेगी तो दास्तां रहेगी
है वक़्त अब भी निबाह कर लें
तो ज़िंदगी मेह्रबां रहेगी
तुम्हारे आमाल तय करेंगे
कि रूह आख़िर कहां रहेगी
थमा सफ़र जो कभी हमारा
ग़ज़ल हमारी रवां रहेगी
मिरे मकां का तवाफ़ करना
कि हर तमन्ना जवां रहेगी
ये दौरे-दहशत तवील होगा
जो चुप अभी भी ज़ुबां रहेगी
उड़ेगी जब ख़ाक ज़र्रा-ज़र्रा
फ़िज़ा में अपनी अज़ाँ रहेगी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दास्तां: आख्यान, कथा; निबाह: निर्वाह; मेह्रबां: कृपालु; आमाल: आचरण; रवां: प्रवाहमान; मकां: समाधि, क़ब्र; तवाफ़: परिक्रमा; तमन्ना: अभिलाषा; जवां: युवा; दौरे-दहशत: आतंक का समय; तवील: विस्तृत; ज़ुबां: जिव्हा; ख़ाक: चिता की भस्म; ज़र्रा-ज़र्रा: कण-कण; फ़िज़ा: वातावरण ।
रहेगी तो दास्तां रहेगी
है वक़्त अब भी निबाह कर लें
तो ज़िंदगी मेह्रबां रहेगी
तुम्हारे आमाल तय करेंगे
कि रूह आख़िर कहां रहेगी
थमा सफ़र जो कभी हमारा
ग़ज़ल हमारी रवां रहेगी
मिरे मकां का तवाफ़ करना
कि हर तमन्ना जवां रहेगी
ये दौरे-दहशत तवील होगा
जो चुप अभी भी ज़ुबां रहेगी
उड़ेगी जब ख़ाक ज़र्रा-ज़र्रा
फ़िज़ा में अपनी अज़ाँ रहेगी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दास्तां: आख्यान, कथा; निबाह: निर्वाह; मेह्रबां: कृपालु; आमाल: आचरण; रवां: प्रवाहमान; मकां: समाधि, क़ब्र; तवाफ़: परिक्रमा; तमन्ना: अभिलाषा; जवां: युवा; दौरे-दहशत: आतंक का समय; तवील: विस्तृत; ज़ुबां: जिव्हा; ख़ाक: चिता की भस्म; ज़र्रा-ज़र्रा: कण-कण; फ़िज़ा: वातावरण ।