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गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

बंदगी का इम्तेहां

बड़े  सुकूं  से  मेरा  यार  दिलो-जां  मांगे
मगर  ये:  बात  न  हुई  के:  वो:  ईमां  मांगे

हमें  हंसी  न  आएगी  के:  जब  कोई  क़ासिद
पयामे-यार  से  पहले  कोई  निशां   मांगे

मेरी  परवाज़  पे  हंसते  हैं  जो  जहां  वाले
उन्हीं  से  आज  मेरा  अज़्म  आस्मां  मांगे

मेरे  ख़यालो-ओ-तसव्वुर  की  हद  नहीं  कोई
मेरा  वक़ार  कई  और  भी  जहां  मांगे

हमारे  इश्क़  की  तौहीन  और  क्या  होगी
ख़ुदा  हमीं  से  बंदगी  का  इम्तेहां  मांगे  !

                                                             ( 2013 )

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: सुकूं: शांति;   ईमां: आस्था; क़ासिद: पत्र-वाहक; पयामे-यार: प्रेमी का संदेश, निशां: पहचान-चिह्न; परवाज़: उड़ान; जहां: दुनिया; अज़्म: अहम्मन्यता; आस्मां:आकाश; विचार और कल्पना-शक्ति; हद: सीमा; वक़ार: प्रतिष्ठा; जहां: ब्रह्माण्ड; तौहीन: अपमान; बंदगी: भक्ति।