इस तरह तो जहां में उजाला न हो
के: शबे-तार का रंग काला न हो
मैकदे में चला आए सैलाबे-नूर
मै बहे इस क़दर पीने वाला न हो
शैख़ बतलाएं कब कब ख़राबात में
वो गिरे और हमने उठाया न हो
और उम्मीद क्या कीजिए आपसे
इश्क़ में ही अगर बोल बाला न हो
उस तरक़्क़ी के मा'नी भला क्या हुए
हाथ अत्फ़ाल के गर निवाला न हो
कौन उसको कहेगा तुम्हारी ग़ज़ल
शे'र दर शे'र जिसका निराला न हो
कोई शायर नहीं दो जहां में जिसे
अर्श वालों ने घर से निकाला न हो !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ :शबे-तार: अमावस्या ; मदिरालय ; सैलाबे-नूर : प्रकाश का उत्प्लावन ; मै : मदिरा ; क़दर : सीमा तक;
शैख़ : धर्म भीरु , मदिरा विरोधी ; ख़राबात : मदिरालय ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; मा'नी : अर्थ ; अत्फ़ाल : शिशुओं ; निवाला : कंवल, कौर ; अर्श वालों : आकाश वालों, ईश्वर ।
के: शबे-तार का रंग काला न हो
मैकदे में चला आए सैलाबे-नूर
मै बहे इस क़दर पीने वाला न हो
शैख़ बतलाएं कब कब ख़राबात में
वो गिरे और हमने उठाया न हो
और उम्मीद क्या कीजिए आपसे
इश्क़ में ही अगर बोल बाला न हो
उस तरक़्क़ी के मा'नी भला क्या हुए
हाथ अत्फ़ाल के गर निवाला न हो
कौन उसको कहेगा तुम्हारी ग़ज़ल
शे'र दर शे'र जिसका निराला न हो
कोई शायर नहीं दो जहां में जिसे
अर्श वालों ने घर से निकाला न हो !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ :शबे-तार: अमावस्या ; मदिरालय ; सैलाबे-नूर : प्रकाश का उत्प्लावन ; मै : मदिरा ; क़दर : सीमा तक;
शैख़ : धर्म भीरु , मदिरा विरोधी ; ख़राबात : मदिरालय ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; मा'नी : अर्थ ; अत्फ़ाल : शिशुओं ; निवाला : कंवल, कौर ; अर्श वालों : आकाश वालों, ईश्वर ।