ख़ाक ले कर ख़ुदा बना डाला
ज़ौक़े-इंसां ! ये क्या बना डाला ?!
दुश्मनों ने सलाम को अपने
दिलकशी की अदा बना डाला
लाख हरजाई वो रहा हो यूं
वक़्त ने पारसा बना डाला
इश्क़ पर शे'र जो कहा हमने
आशिक़ों ने दुआ बना डाला
शैख़ पीने चले मुरव्वत में
मयकशों को बुरा बना डाला
ख़ूब माशूक़ था कन्हैया वो
ज़ह् र को भी दवा बना डाला
शाह कमज़र्फ़ नहीं तो क्या है
मुफ़लिसों को गदा बना डाला !
उम्र भर नाम गुम रहा अपना
मौत ने मुद्द'आ बना डाला !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ाक: मिट्टी, धूल; ख़ुदा: भगवान की मूर्त्ति; ज़ौक़े-इंसां: मानवीय सुरुचि; दिलकशी: चित्ताकर्षण; अदा: मुद्रा;
हरजाई: हर किसी से प्रेम करते रहने वाला, दुश्चरित्र; पारसा: सदाचारी, संयमी; दुआ: प्रार्थना; शैख़: ईश्वर-भीरु;
मुरव्वत: संकोच, भलमनसाहत; मयकशों: मद्यपों; माशूक़: प्रिय; कमज़र्फ़: ओछा व्यक्ति; मुफ़लिसों: निर्धनों;
गदा: भिक्षुक; मुद्द'आ: चर्चा का विषय।
ज़ौक़े-इंसां ! ये क्या बना डाला ?!
दुश्मनों ने सलाम को अपने
दिलकशी की अदा बना डाला
लाख हरजाई वो रहा हो यूं
वक़्त ने पारसा बना डाला
इश्क़ पर शे'र जो कहा हमने
आशिक़ों ने दुआ बना डाला
शैख़ पीने चले मुरव्वत में
मयकशों को बुरा बना डाला
ख़ूब माशूक़ था कन्हैया वो
ज़ह् र को भी दवा बना डाला
शाह कमज़र्फ़ नहीं तो क्या है
मुफ़लिसों को गदा बना डाला !
उम्र भर नाम गुम रहा अपना
मौत ने मुद्द'आ बना डाला !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ाक: मिट्टी, धूल; ख़ुदा: भगवान की मूर्त्ति; ज़ौक़े-इंसां: मानवीय सुरुचि; दिलकशी: चित्ताकर्षण; अदा: मुद्रा;
हरजाई: हर किसी से प्रेम करते रहने वाला, दुश्चरित्र; पारसा: सदाचारी, संयमी; दुआ: प्रार्थना; शैख़: ईश्वर-भीरु;
मुरव्वत: संकोच, भलमनसाहत; मयकशों: मद्यपों; माशूक़: प्रिय; कमज़र्फ़: ओछा व्यक्ति; मुफ़लिसों: निर्धनों;
गदा: भिक्षुक; मुद्द'आ: चर्चा का विषय।
वाह ! बेहतरीन व मस्त रचना , आ. सुरेश भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
--
श्रीगणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर ग़ज़ल
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