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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

मैकदा है गवाह...

जब  हमें  रास्ता  नहीं  होता
दोस्तों  का  पता  नहीं  होता

सब  गुनहगार  हैं  मुहब्बत  के
अब  कोई  बे-ख़ता  नहीं  होता

खैंच  लाता  है  दिल  को  सीने  से
शे'र  यूं  ही  क़त्'.अ  नहीं  होता

रोग  दिल  का  न  हम  लगा  लेते
दर्द  भी  लापता   नहीं  होता

मुश्किलाते-ग़रीबो-मुफ़लिस  से
शाह  को  वास्ता  नहीं  होता

मैकदा  है  गवाह  सदियों  से 
शैख़  भी  देवता  नहीं  होता

तूर  पर  वो  दिखाई  देते  हैं
पर  कभी  राब्ता  नहीं  होता  !

                                                                       (2016)

                                                              -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: गुनहगार : अपराधी ; बे-ख़ता : निर्दोष, दोष-रहित ; क़त्'.अ : समाप्त ; मुश्किलाते-ग़रीबो-मुफ़लिस : निर्धन-वंचितों की कठिनाइयों ; वास्ता : संबंध, चिंता ; मैकदा : मदिरालय ; शैख़ : धर्मोपदेशक ; तूर :एक मिथकीय पर्वत, जहांईश्वर ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को दर्शन दिए थे ; राब्ता : संपर्क ।