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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

अपना अपना सराब !

अपनी  अपनी  शराब  है  यारों
अपना  अपना  सराब  है  यारों

रिज़्क़  हासिल  नहीं  फ़क़ीरों  को
वक़्त    ख़ाना- ख़राब  है  यारों 

अंदलीबे-चमन  को  होश  नहीं
और  सर  पर  उक़ाब  है  यारों

ज़िंदगी  मुख़्तसर  फ़साना  है
चंद  रोज़ा    हिसाब    है  यारों

अश्क  सीने  में  जम  गए  सारे
इसलिए    इज़्तेराब   है  यारों

जांच  लीजे  क़रीब  आ  के  भी
दिल  सरासर  गुलाब  है  यारों

वो:  हमारा  ख़ुदा  नहीं  हरगिज़
उसके  रुख़  पे  हिजाब  है  यारों

शौक़  से भूल  जाइए  इसको
यूं  ग़ज़ल  लाजवाब  है  यारों !

                                            ( 2013 )

                                       -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: सराब: मरुजल, छलावा; रिज़्क़: भोजन, दैनिक ख़ुराक़; फ़क़ीरों: भिक्षुकों, सन्यासियों; ख़ाना- ख़राब: बे-घर, भटकता हुआ; अंदलीबे-चमन: उपवन की कोयल; उक़ाब:  गरुड़, छोटे पक्षियों का शिकार करने वाला पक्षी; मुख़्तसर: संक्षिप्त;  फ़साना: मिथ्या कहानी; 
चंद रोज़ा: चार दिन का;  इज़्तेराब: व्याकुलता; रुख़: मुख;  हिजाब: आवरण। .




गुनहगार ख़ुश रहे !

इस  दौर  का  अमल  है  के:  सरकार  ख़ुश  रहे
अल्लाह    ख़ुश   रहे  न   रहे    ज़ार    ख़ुश  रहे

मरती   रहे     अवाम     अगर    भूख   से   मरे
हाकिम  है   फ़िक्रमंद    के:    बाज़ार  ख़ुश  रहे

इस  दौरे-सियासत    के    क़वायद  कमाल  हैं
कट  जाएं  सब  सिपाही  प'  सरदार  ख़ुश  रहे

एहसान   कीजिए   के:  चले  आएं    ख़्वाब  में
क्यूं  कर  न  कभी   आपका  बीमार  ख़ुश  रहे

करता  है   बंदगी  में   वफ़ा  की   अगर  उमीद
तेरा   भी   फ़र्ज़  है   के:   तलबगार    ख़ुश  रहे

क्या  तब  भी    इन्क़िलाब    ज़रूरी  नहीं  यहां
मासूम   क़ैद    में    हों    गुनहगार     ख़ुश  रहे

अब  कीजिए  अहद  के:  लौट  आएं  वही  दिन
जब  मुफ़लिसो-मज़ूर  का  घर-बार  ख़ुश  रहे  !

                                                                  ( 2013 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अमल: आचरण; ज़ार: रूस के निर्दयी, जन-विरोधी शासक जो 1917 की  जन-क्रांति में परास्त हुए; 
अवाम: जनता; हाकिम: शासक; फ़िक्रमंद: चिंतित; दौरे-सियासत: राजनैतिक युग;  क़वायद: नियम (बहु.);
बंदगी: भक्ति; वफ़ा: आस्था, ईमानदारी; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; तलबगार: आशा रखने वाला; इन्क़िलाब: क्रान्ति; 
मासूम: निर्दोष; गुनहगार: अपराधी; अहद: संकल्प, प्रतिज्ञा; मुफ़लिसो-मज़ूर: निर्धन और श्रमिक-वर्ग।