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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

दिलकुशी की वजह...!

काश !  दिल  को  क़रार  आ  जाए
कारवां  - ए - बहार        आ  जाए

कौन    कम्बख़्त   ख़ुम्र   मांगे  है
जो  नज़र  में    ख़ुमार   आ जाए

ख़्वाब  भी    आएंगे    निगाहों  में
नींद  पर    इख़्तियार    आ  जाए

दिलकुशी  की  वजह  ज़रा-सी  है
आपको        ऐतबार     आ  जाए

दोस्ती    चार  दिन   नहीं  चलती
गर  दिलों  में    दरार    आ  जाए 

हो  हुकूमत  यज़ीद  की  हम  पर
तो  क़यामत    हज़ार    आ  जाए

ज़िंदगी     रोज़    मार     डाले  है
मौत  ही     एक   बार   आ  जाए

हो  अज़ां-ए-फजर  तेरे  मुंह  से
तो      शबे-इंतेज़ार     आ  जाए

बोरिया  बंध  गया  हमारा  अब
आस्मां  से    पुकार     आ जाए  !

                                                  ( 2014 )

                                            -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ:   क़रार: धैर्य, संतोष; कारवां-ए-बहार: दल-बल सहित बसंत; कम्बख़्त: अभागा; ख़ुम्र: मदिरा; ख़ुमार: मद; इख़्तियार: नियंत्रण; दिलकुशी: मन पर नियंत्रण, इच्छाओं का दमन; ऐतबार: विश्वास; गर: यदि; यज़ीद: हज़रत इमाम हुसैन स.अ. और उनके साथियों का हत्यारा; क़यामत: प्रलय; अज़ां-ए-फजर: उष:काल के समय होने वाली अज़ान; शबे-इंतेज़ार: प्रतीक्षा की रात्रि; बोरिया: बिस्तर-बोरिया, यात्रा का सामान