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मंगलवार, 17 मई 2016

मांगिए सर मियां !

शे'र  कहना  कहीं  गुनाह  नहीं
फिर  हमें  भी  तो  कोई  राह  नहीं

ले  गए  जान  वो  निगाहों  से
पर  कोई  क़त्ल  का  गवाह  नहीं

तंज़  यह  सोच  कर  करें  हम  पर
आप  क्या  इश्क़  में  तबाह  नहीं

हैं  यहां  बेचवाल  भी  दिल  के
ताजिरों  से  मेरा  निबाह  नहीं

तेग़  में  ज़ोर  है  तो  आ  जाएं
.खूं  हमारा  कभी  सियाह  नहीं

जी,  हमें  ज़ो'म  है  बग़ावत  का
मांगिए  सर  मियां !  कुलाह  नहीं

हम  फ़क़ीरों  को  आप  क्या  देंगे
आप    यूं  भी   जहांपनाह    नहीं !

                                                                       (2016)

                                                                 -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ : गुनाह : अपराध , राह : मार्ग ; कत्ल : हत्या ; गवाह : साक्षी ; तंज़ : व्यंग्य ; तबाह : ध्वस्त ; बेचवाल : विक्रेता ; ताजिरों : व्यापारियों ; निबाह : निर्वाह; तेग़ : कृपाण ; .खूं : रक्त; सियाह : कृष्णवर्णी ;  ज़ो'म :अभिमान; बग़ावत : विद्रोह ; कुलाह :शिरोवस्त्र ; पगड़ी ; फ़क़ीरों : भिक्षुकों ; जहांपनाह :संसार का शासक, शरणदाता।