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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

शाह-ए-हिन्दोस्तां , तू भी सुन

अपना  अरमान  कुछ  और  है
दिल  का  तूफ़ान कुछ  और  है

हम    तड़पते     रहेंगे     सदा
तेरा   एहसान   कुछ   और  है

वो:   करेंगे    न     वादे    वफ़ा
हमको  इमकान  कुछ  और  है

किस   तरह    उनपे  आए  यक़ीं
उनका   ईमान    कुछ   और  है

शम्स  की  है  सियासत  अलग
रात    सुनसान    कुछ  और  है

शाह-ए-हिन्दोस्तां ,  तू  भी  सुन
ये:   बियाबान    कुछ   और   है

मानते    हैं     के:   तू   है   ख़ुदा
नेक    इंसान    कुछ   और  है !

                                            ( 2012 )

                                      -सुरेश  स्वप्निल  

शब्दार्थ : वफ़ा: निभाना, यहाँ 'वादे वफ़ा' का अर्थ है वादे निभाना; इमकान: आशंका; 
             शम्स : सूर्य 

बढ़ रही है बेताबी

दिल   बहलना   बहुत   ज़रूरी   है
तेरा   मिलना    बहुत   ज़रूरी   है

ख़ामुशी     दूरियां     बढ़ा      देगी
बात    चलना    बहुत     ज़रूरी   है

दिन-ब-दिन  बढ़  रही  है    बेताबी
राह    मिलना     बहुत   ज़रूरी   है 

रात -  भर   पी    तेरी  निगाहों  से
अब   संभलना    बहुत   ज़रूरी   है

दर्द   सीने   में   घर    न  कर  बैठे
आहें    भरना    बहुत   ज़रूरी    है

तीरगी    रूह   तक    न  छा  जाए
दिन  निकलना    बहुत  ज़रूरी  है

अब्र-ए-दहशत हैं  के: छंटते ही नहीं
रुत    बदलना      बहुत   ज़रूरी  है।

                                  ( 31 जन . 2013)

                                -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: तीरगी : अंधकार ; अब्र-ए-दहशत : आतंक  के  बादल