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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ख़्वाब हूरों के...

जब्र  से  बंदा  बनाना  ठीक  है  ?
और  फिर  एहसां  जताना  ठीक  है  ?

रिंद  को  मजबूर  करके  ख़ुम्र  से
शैख़  को  सेहरा  सजाना  ठीक  है  ?

क्या  हक़ीक़त  है  सुने-समझे  बिना
ग़ैर  पर  तोहमत  लगाना  ठीक  है  ?

मुफ़्लिसो-मज़्लूम  की  छत  छीन  कर
ताजिरों  को  सर  चढ़ाना  ठीक  है  ?

आदमी  को  हाशिये  पर  डाल  कर
ज़ार  का  जन्नत  बसाना  ठीक  है  ?

शाह  का  सारे  फ़राईज़ भूल  कर
इशरतों  में  ज़र  लुटाना  ठीक  है  ?

जब  मज़ाहिब  में  अक़ीदत  ही  नहीं
ख़्वाब  हूरों  के  दिखाना  ठीक  है  ?

तूर  पर  हमको  बुला  कर  आपका
आस्मां  से  मुस्कुराना  ठीक  है  ?

                                                                              (2016)

                                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: जब्र : बल ; बंदा : भक्त, अनुयायी ; एहसां : अनुग्रह ; रिंद : मद्यप ; ख़ुम्र : मदिरा ; शैख़ : धर्मोपदेशक ; सेहरा : वर को पहनाया जाने वाला शिरो-वस्त्र, पगड़ी ; हक़ीक़त : यथार्थ, वास्तविकता ; ग़ैर : अन्य ; तोहमत : आरोप, दोष ; मुफ़्लिसो-मज़्लूम : वंचित-दलित ; ताजिरों : व्यापारियों ; हाशिये : सीमांत ; ज़ार : निरंकुश शासक ; जन्नत : स्वर्ग ; फ़राईज़ : कर्त्तव्य (बहुव.) ; इशरतों : विलासिताओं ; ज़र : धन, स्वर्ण ; मज़ाहिब : धर्म (बहुव.) ; अक़ीदत : आस्था ; ख़्वाब : स्वप्न ; हूरों : अप्सराओं ; तूर : एक मिथकीय पर्वत, ईश्वर के प्रकट होने का स्थान ; आसमां : आकाश, स्वर्ग ।