यौमे-मज़दूर पर
लाल सलाम !
सारी सरकारें झुकती हैं सरमाएदारों के आगे
हम मेहनतकश दीवार बने हैं इन मुर्दारों के आगे
तुम नाहक़ नाक रगड़ते हो हर दिन अख़बारों के आगे
झुकने को हम भी झुकते हैं लेकिन ख़ुद्दारों के आगे
वो अपनी पर आ कर देखें हम क्या तूफ़ान उठाते हैं
तारीख़ हमारे पीछे है फ़र्ज़ी किरदारों के आगे
ज़रदारों के घर के होंगे जो डर जाएं हथियारों से
हम खुल्ला सीना रखते हैं नंगी तलवारों के आगे !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
वाह, लाल सलाम!
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