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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

दाव:-ए-हस्रते-दिल ...

उलझनों  से  भरा  दिल  नहीं  चाहिए
मुफ़्त  में  कोई  मुश्किल  नहीं  चाहिए

जान  ले  जाइए  ग़म  न  होगा  हमें
दाव:-ए-हस्रते-दिल    नहीं  चाहिए

बात  ईमान  की  है  वफ़ा  की  नहीं
इश्क़  में  कोई  हासिल  नहीं  चाहिए

आबले-पाऊं     देते  रहें     हौसला
हर  क़दम  पर  मराहिल  नहीं  चाहिए

रोकने    आए  हैं    राह  तूफ़ान  की
फ़त्ह  से  क़ब्ल   साहिल  नहीं  चाहिए

जीत  या  हार  किरदार  का  खेल  है
जंगे-मैदां   में  बुज़दिल  नहीं  चाहिए

साथ  में  चल  रहा  है  हमारा  क़फ़न
मेह्र्बानि-ए-क़ातिल      नहीं  चाहिए  !

                                                                      (2017)

                                                                 -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: दाव:-ए-हस्रते-दिल : मन की इच्छाओं पर नियंत्रण; ईमान : आस्था; वफ़ा : निष्ठा; हासिल : उपलब्धि; आबले-पाऊं : पांव के छाले; हौसला : साहस; मराहिल : पड़ाव, विश्राम-स्थल; तूफ़ान : झंझावात; फ़त्ह : विजय;   क़ब्ल : पूर्व; साहिल : तट, किनारा; किरदार : चरित्र, व्यक्तित्व; जंगे-मैदां : मैदानी युद्ध; बुज़दिल : कायर मेह्र्बानि-ए-क़ातिल : हत्यारे की कृपा। 

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