मुहब्बत न हो तो जहां क्या करेगा
ज़मीं के बिना आस्मां क्या करेगा
नफ़स दर नफ़स दिल जहां टूटते हों
वहां कोई दिल का गुमां क्या करेगा
यहां बात है मेरी तन्हाइयों की
क़फ़स में मदद मेह्रबां क्या करेगा
न दीवारो-दर है न साया ख़ुदा का
हिफ़ाज़त मेरा आशियां क्या करेगा
रग़ों में रवां हो जहालत जहां पर
बयां कोई अह् ले-ज़ुबां क्या करेगा
मुसाफ़िर तड़प ही न पालें जिगर में
तो सर मंज़िलें कारवां क्या करेगा
कमां सौंप दी हाथ में क़ातिलों के
ये जम्हूरे-हिंदोस्तां क्या करेगा ?!
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थः जहां: संसार; ज़मीं : पृथ्वी, आधार; आस्मां : आकाश, ईश्वर; नफ़स: श्वांस; गुमां: गर्व, अहंकार; क़फ़स : पिंजरा, कारागार;
मेह्रबां : कृपा करने वाला; दीवारो-दर : भित्ति एवं द्वार; साया : छाया; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; आशियां : आवास; रग़ों : शिराओं; रवां: प्रवाहमान; जहालत : मूढ़ता; बयां : कथन, उल्लेख, वर्णन; अह् ले-जुबां : भाषाविद, साहित्यकार; जिगर : हृदय; सर : विजित; मंज़िलें : लक्ष्य;
कारवां : यात्री-दल; कमां : नियंत्रण, सत्ता-सूत्र; जम्हूरे-हिंदोस्तां : भारतीय लोकतंत्र।
ज़मीं के बिना आस्मां क्या करेगा
नफ़स दर नफ़स दिल जहां टूटते हों
वहां कोई दिल का गुमां क्या करेगा
यहां बात है मेरी तन्हाइयों की
क़फ़स में मदद मेह्रबां क्या करेगा
न दीवारो-दर है न साया ख़ुदा का
हिफ़ाज़त मेरा आशियां क्या करेगा
रग़ों में रवां हो जहालत जहां पर
बयां कोई अह् ले-ज़ुबां क्या करेगा
मुसाफ़िर तड़प ही न पालें जिगर में
तो सर मंज़िलें कारवां क्या करेगा
कमां सौंप दी हाथ में क़ातिलों के
ये जम्हूरे-हिंदोस्तां क्या करेगा ?!
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थः जहां: संसार; ज़मीं : पृथ्वी, आधार; आस्मां : आकाश, ईश्वर; नफ़स: श्वांस; गुमां: गर्व, अहंकार; क़फ़स : पिंजरा, कारागार;
मेह्रबां : कृपा करने वाला; दीवारो-दर : भित्ति एवं द्वार; साया : छाया; हिफ़ाज़त: सुरक्षा; आशियां : आवास; रग़ों : शिराओं; रवां: प्रवाहमान; जहालत : मूढ़ता; बयां : कथन, उल्लेख, वर्णन; अह् ले-जुबां : भाषाविद, साहित्यकार; जिगर : हृदय; सर : विजित; मंज़िलें : लक्ष्य;
कारवां : यात्री-दल; कमां : नियंत्रण, सत्ता-सूत्र; जम्हूरे-हिंदोस्तां : भारतीय लोकतंत्र।
सटीक व सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
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