चुरा कर दिल परेशां हैं यहां रक्खें वहां रक्खें
हमीं से पूछ लेते हम बता देते कहां रक्खें
मनाएं जश्न अपनी कामयाबी का मगर पहले
ज़मीं पर पांव रख लें तब नज़र में आस्मां रक्खें
अज़ीज़ों से गुज़ारिश है कि जब लें फ़ैसला ख़ुद पर
हमारा नाम भी अपने ज़ेहन में मेह्रबां रक्खें
ज़ईफ़ी मस्'.अला है जिस्म का दिल पर असर क्यूं हो
मियां जी ! कम अज़ कम अपने ख़्यालों को जवां रक्खें
जिन्हें है शौक़ मन की बात दुनिया को सुनाने का
मजालिस से मुख़ातिब हों तो फूलों सी ज़ुबां रक्खें
बने हैं जो चमन के बाग़बां यह फ़र्ज़ है उनका
बरस में दो महीने तो बहारों का समां रक्खें
फ़रिश्तों को बता दीजे कि हम तैयार बैठे हैं
हमारे वास्ते भी अर्श पर ख़ाली मकां रक्खें !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : परेशां : चिंतित ; जश्न : समारोह ; कामयाबी : सफलता ; अज़ीज़ों : प्रिय जन ; गुज़ारिश : अनुरोध ; ज़ेहन : मस्तिष्क, ध्यान ; मेह्रबां : कृपालु ; ज़ईफ़ी : वृद्धावस्था ; मस्'.अला : समस्या ; जिस्म : शरीर ; अज़ :से ; मजालिस : सभाओं ; मुख़ातिब : संबोधित ; ज़ुबां :भाषा, शब्दावली ; चमन : उपवन ,देश ; बाग़बां : माली ;
फर्ज़ : कर्त्तव्य ; समां : वातावरण ; फ़रिश्तों : मृत्यु-दूतों ; अर्श : आकाश, परलोक ; ख़ाली : रिक्त ; मकां : आवास ।
हमीं से पूछ लेते हम बता देते कहां रक्खें
मनाएं जश्न अपनी कामयाबी का मगर पहले
ज़मीं पर पांव रख लें तब नज़र में आस्मां रक्खें
अज़ीज़ों से गुज़ारिश है कि जब लें फ़ैसला ख़ुद पर
हमारा नाम भी अपने ज़ेहन में मेह्रबां रक्खें
ज़ईफ़ी मस्'.अला है जिस्म का दिल पर असर क्यूं हो
मियां जी ! कम अज़ कम अपने ख़्यालों को जवां रक्खें
जिन्हें है शौक़ मन की बात दुनिया को सुनाने का
मजालिस से मुख़ातिब हों तो फूलों सी ज़ुबां रक्खें
बने हैं जो चमन के बाग़बां यह फ़र्ज़ है उनका
बरस में दो महीने तो बहारों का समां रक्खें
फ़रिश्तों को बता दीजे कि हम तैयार बैठे हैं
हमारे वास्ते भी अर्श पर ख़ाली मकां रक्खें !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : परेशां : चिंतित ; जश्न : समारोह ; कामयाबी : सफलता ; अज़ीज़ों : प्रिय जन ; गुज़ारिश : अनुरोध ; ज़ेहन : मस्तिष्क, ध्यान ; मेह्रबां : कृपालु ; ज़ईफ़ी : वृद्धावस्था ; मस्'.अला : समस्या ; जिस्म : शरीर ; अज़ :से ; मजालिस : सभाओं ; मुख़ातिब : संबोधित ; ज़ुबां :भाषा, शब्दावली ; चमन : उपवन ,देश ; बाग़बां : माली ;
फर्ज़ : कर्त्तव्य ; समां : वातावरण ; फ़रिश्तों : मृत्यु-दूतों ; अर्श : आकाश, परलोक ; ख़ाली : रिक्त ; मकां : आवास ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-05-2016) को "कहाँ गये मन के कोमल भाव" (चर्चा अंक-2355) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वेहतरीन ग़ज़ल । मुझे बहुत अच्छी लगी।
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