हो जहां ज़िंदगी तेग़ की धार पर
जब्र होने न दें अपने किरदार पर
आईना भी कहां तक मज़म्मत करे
दाग़ ही दाग़ हैं जिस्मे-सरकार पर
नाम जम्हूरियत का बदल दीजिए
हो अक़ीदा अगर रस्मे-बाज़ार पर
आप शायद समझ ही न पाएं कभी
लोग ख़ुश क्यूं हुए आपकी हार पर
मज्लिसे-शाह में जो नवाज़े गए
अब सफ़ाई न दें अपनी दस्तार पर
रोज़ मिलना ज़रूरी नहीं ना सही
आइए तो कभी तीज-त्यौहार पर
' तूर की राह रौशन हमीं ने रखी
हक़ हमें क्यूं न हो आपके प्यार पर ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तेग़ : कृपाण ; जब्र : बल-प्रयोग ; किरदार : चरित्र ; मज़म्मत : निंदा, आलोचना ; जिस्मे-सरकार : शासन का शरीर, शासन-तंत्र ; जम्हूरियत : लोकतंत्र ; अक़ीदा : आस्था ; रस्मे-बाज़ार : व्यापार की प्रथा ; मज्लिसे-शाह : राजसभा ; राजा की सभा ; नवाज़े : पुरस्कृत , सम्मानित ; दस्तार : शिरो-वस्त्र, प्रतिष्ठा ; तूर : कोहे-तूर, अरब का एक मिथकीय पर्वत, जहां हज़रत मूसा अ.स. को ख़ुदा की झलक दिखाई दी थी ; रौशन : प्रकाशित ; हक़ : अधिकार ।
जब्र होने न दें अपने किरदार पर
आईना भी कहां तक मज़म्मत करे
दाग़ ही दाग़ हैं जिस्मे-सरकार पर
नाम जम्हूरियत का बदल दीजिए
हो अक़ीदा अगर रस्मे-बाज़ार पर
आप शायद समझ ही न पाएं कभी
लोग ख़ुश क्यूं हुए आपकी हार पर
मज्लिसे-शाह में जो नवाज़े गए
अब सफ़ाई न दें अपनी दस्तार पर
रोज़ मिलना ज़रूरी नहीं ना सही
आइए तो कभी तीज-त्यौहार पर
' तूर की राह रौशन हमीं ने रखी
हक़ हमें क्यूं न हो आपके प्यार पर ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तेग़ : कृपाण ; जब्र : बल-प्रयोग ; किरदार : चरित्र ; मज़म्मत : निंदा, आलोचना ; जिस्मे-सरकार : शासन का शरीर, शासन-तंत्र ; जम्हूरियत : लोकतंत्र ; अक़ीदा : आस्था ; रस्मे-बाज़ार : व्यापार की प्रथा ; मज्लिसे-शाह : राजसभा ; राजा की सभा ; नवाज़े : पुरस्कृत , सम्मानित ; दस्तार : शिरो-वस्त्र, प्रतिष्ठा ; तूर : कोहे-तूर, अरब का एक मिथकीय पर्वत, जहां हज़रत मूसा अ.स. को ख़ुदा की झलक दिखाई दी थी ; रौशन : प्रकाशित ; हक़ : अधिकार ।
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