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सोमवार, 2 मई 2016

दिल की बात ...

चले  जाते  मगर  पहले  बता  देते  तो  अच्छा  था
रुसूमे-तर्के-दिलदारी  निभा  देते  तो  अच्छा  था

हुई  गर  आपसे  वादा-फ़रामोशी  शरारत  में
कोई  मुमकिन  बहाना  भी  बना  देते  तो अच्छा  था

सुना  है  आपने  सब  दौलते-दिल  बांट  दी  अपनी
हमारा  क़र्ज़े-उल्फ़त  भी  चुका  देते  तो  अच्छा  था

उठाने  को  उठा  लेंगे  अकेले  बार  हम  दिल  का
ज़रा-सा  हाथ  गर  तुम  भी  लगा  देते  तो  अच्छा  था

ज़ुबां  पकड़ी  न  सर  काटा  मगर  ख़ामोश  कर  डाला
हुनर  ये:  आप  हमको  भी  सिखा  देते  तो  अच्छा  था

सरों  को  रौंद  कर  जो  लोग  'दिल  की  बात'  कहते  हैं
गरेबां  की  तरफ़    नज़रें    झुका  देते  तो  अच्छा  था

ख़बर  क्या  थी    फ़रिश्ते    लौट  जाएंगे  हमारे  बिन
फजर  से  क़ब्ल  तुम  हमको  जगा  देते  तो  अच्छा  था !

                                                                                                      (2016)

                                                                                               -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : रुसूमे-तर्के-दिलदारी : हृदय का संबंध तोड़ने की प्रथाएं ; दौलते-दिल : मन की /भावनात्मक संपत्ति ; क़र्ज़े-उल्फ़त : प्रेम का ऋण ; बार : बोझ, भार ; गर : यदि ; ज़ुबां : जिव्हा ; हुनर : कौशल ; गरेबां : कंठ के नीचे का स्थान, हृदय-क्षेत्र ; फ़रिश्ते : मृत्यु-दूत ; फजर : ब्राह्म-मुहूर्त्त ; क़ब्ल : पूर्व ।


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2016) को "सुलगता सवेरा-पिघलती शाम" (चर्चा अंक-2332) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सच बात है काम तो चल ही जाता है...............वाह , उम्दा !

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