बात बनती बिगड़ती चली जाएगी
दिल गया तो लबों की हंसी जाएगी
सर झुका कर मिले दिल तो तय मानिए
शर्त्त कल ख़ुदकुशी की रखी जाएगी
सिर्फ़ ईमां नहीं जाएगा हाथ से
साथ में रूह की रौशनी जाएगी
अब्र ख़ामोश हैं और गुल ख़ुश्क़ लब
देखिए किस तरह तिश्नगी जाएगी
आस्मां भी सियासत दिखाने लगा
चांद घर आए तो चांदनी जाएगी
आज मेहनतकशों का बुरा वक़्त है
कल ये दुनिया दोबारा गढ़ी जाएगी
रिज़्क़ की भीख मत लीजिए शाह से
आपसे क्या हतक यह सही जाएगी ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लबों : ओष्ठाधर ; ख़ुदकुशी : आत्म-हत्या ; ईमां : आस्था, निष्ठा ; रूह : आत्मा ; रौशनी : प्रकाश ; अब्र : मेघ ; ख़ामोश : मौन ; गुल : पुष्प ; ख़ुश्क़ : शुष्क ; तिश्नगी : सुधा ; आस्मां : आकाश, ईश्वर ; सियासत : कूटनीति ; मेहनतकशों : श्रमिकों ; रिज़्क़ : भोजन, आजीविका ; हतक : अपमान ।
दिल गया तो लबों की हंसी जाएगी
सर झुका कर मिले दिल तो तय मानिए
शर्त्त कल ख़ुदकुशी की रखी जाएगी
सिर्फ़ ईमां नहीं जाएगा हाथ से
साथ में रूह की रौशनी जाएगी
अब्र ख़ामोश हैं और गुल ख़ुश्क़ लब
देखिए किस तरह तिश्नगी जाएगी
आस्मां भी सियासत दिखाने लगा
चांद घर आए तो चांदनी जाएगी
आज मेहनतकशों का बुरा वक़्त है
कल ये दुनिया दोबारा गढ़ी जाएगी
रिज़्क़ की भीख मत लीजिए शाह से
आपसे क्या हतक यह सही जाएगी ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लबों : ओष्ठाधर ; ख़ुदकुशी : आत्म-हत्या ; ईमां : आस्था, निष्ठा ; रूह : आत्मा ; रौशनी : प्रकाश ; अब्र : मेघ ; ख़ामोश : मौन ; गुल : पुष्प ; ख़ुश्क़ : शुष्क ; तिश्नगी : सुधा ; आस्मां : आकाश, ईश्वर ; सियासत : कूटनीति ; मेहनतकशों : श्रमिकों ; रिज़्क़ : भोजन, आजीविका ; हतक : अपमान ।
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