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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

ख़ुद्दारिए-अवाम...

अल्लाह  जानता  था  कि  बंदा  ग़रीब  है
फिर  क्या  वजह  है  आज  तलक  कमनसीब  है

ख़ुद्दारिए-अवाम  तरक़्क़ी  में  बिक  गई
फ़ाक़ाकशी  के  डर  से  परेशां  अदीब  है

बादे-सबा  है  चंद  अमीरों  की  क़ैद  में
सबको  ख़बर  है  कौन  गुलों  का  रक़ीब  है

दुश्वारियों  का  ज़िक्र  ज़ुबां  तक  न  आ  सके
साज़िश  निज़ाम  की  है  कि  अपना  नसीब  है

दिल  लूटना  सवाब  तो  दिल  मांगना  गुनाह
दुनिया-ए-इश्क़  का  ये  क़ायदा  अजीब  है

थामा  था  जिसने  हाथ  बड़े  एतबार  से
वो  शख़्स  वक़्ते-मर्ग़  भी  दिल  के  क़रीब  है

क्या  सोज़  है  कि  सब दरख़्त  झूमने लगे
तेरी अज़ां  है  या  सदा-ए-अंदलीब  है  !

                                                                                        (2016)

                                                                                 -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: बंदा : सेवक, भक्त ; कमनसीब : अल्प-भाग्य ; ख़ुद्दारिए-अवाम : नागरिकों का स्वाभिमान ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; फ़ाक़ाकशी : भुखमरी ; अदीब : साहित्यकार ;  बादे-सबा : प्रभात समीर ; गुलों : पुष्पों ; रक़ीब : शत्रु ; दुश्वारियों : कठिनाइयों ; ज़िक्र : उल्लेख ; ज़ुबां : जिव्हा ; साज़िश : षड्यंत्र ; निज़ाम : शासन-व्यवस्था, सरकार ; नसीब : प्रारब्ध ; सवाब : पुण्य ; गुनाह : पाप, अपराध ; दुनिया-ए-इश्क़ : प्रेम-संसार ; क़ायदा : नियम ; ऐतबार : विश्वास ; शख़्स : व्यक्ति ; वक़्ते-मर्ग़ : मृत्यु के समय ; सोज़ : स्वर-माधुर्य ; दरख्त : वृक्ष ; अज़ां : अज़ान ; सदा-ए-अंदलीब : कोयल की पुकार।  

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