अल्लाह जानता था कि बंदा ग़रीब है
फिर क्या वजह है आज तलक कमनसीब है
ख़ुद्दारिए-अवाम तरक़्क़ी में बिक गई
फ़ाक़ाकशी के डर से परेशां अदीब है
बादे-सबा है चंद अमीरों की क़ैद में
सबको ख़बर है कौन गुलों का रक़ीब है
दुश्वारियों का ज़िक्र ज़ुबां तक न आ सके
साज़िश निज़ाम की है कि अपना नसीब है
दिल लूटना सवाब तो दिल मांगना गुनाह
दुनिया-ए-इश्क़ का ये क़ायदा अजीब है
थामा था जिसने हाथ बड़े एतबार से
वो शख़्स वक़्ते-मर्ग़ भी दिल के क़रीब है
क्या सोज़ है कि सब दरख़्त झूमने लगे
तेरी अज़ां है या सदा-ए-अंदलीब है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बंदा : सेवक, भक्त ; कमनसीब : अल्प-भाग्य ; ख़ुद्दारिए-अवाम : नागरिकों का स्वाभिमान ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; फ़ाक़ाकशी : भुखमरी ; अदीब : साहित्यकार ; बादे-सबा : प्रभात समीर ; गुलों : पुष्पों ; रक़ीब : शत्रु ; दुश्वारियों : कठिनाइयों ; ज़िक्र : उल्लेख ; ज़ुबां : जिव्हा ; साज़िश : षड्यंत्र ; निज़ाम : शासन-व्यवस्था, सरकार ; नसीब : प्रारब्ध ; सवाब : पुण्य ; गुनाह : पाप, अपराध ; दुनिया-ए-इश्क़ : प्रेम-संसार ; क़ायदा : नियम ; ऐतबार : विश्वास ; शख़्स : व्यक्ति ; वक़्ते-मर्ग़ : मृत्यु के समय ; सोज़ : स्वर-माधुर्य ; दरख्त : वृक्ष ; अज़ां : अज़ान ; सदा-ए-अंदलीब : कोयल की पुकार।
फिर क्या वजह है आज तलक कमनसीब है
ख़ुद्दारिए-अवाम तरक़्क़ी में बिक गई
फ़ाक़ाकशी के डर से परेशां अदीब है
बादे-सबा है चंद अमीरों की क़ैद में
सबको ख़बर है कौन गुलों का रक़ीब है
दुश्वारियों का ज़िक्र ज़ुबां तक न आ सके
साज़िश निज़ाम की है कि अपना नसीब है
दिल लूटना सवाब तो दिल मांगना गुनाह
दुनिया-ए-इश्क़ का ये क़ायदा अजीब है
थामा था जिसने हाथ बड़े एतबार से
वो शख़्स वक़्ते-मर्ग़ भी दिल के क़रीब है
क्या सोज़ है कि सब दरख़्त झूमने लगे
तेरी अज़ां है या सदा-ए-अंदलीब है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बंदा : सेवक, भक्त ; कमनसीब : अल्प-भाग्य ; ख़ुद्दारिए-अवाम : नागरिकों का स्वाभिमान ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; फ़ाक़ाकशी : भुखमरी ; अदीब : साहित्यकार ; बादे-सबा : प्रभात समीर ; गुलों : पुष्पों ; रक़ीब : शत्रु ; दुश्वारियों : कठिनाइयों ; ज़िक्र : उल्लेख ; ज़ुबां : जिव्हा ; साज़िश : षड्यंत्र ; निज़ाम : शासन-व्यवस्था, सरकार ; नसीब : प्रारब्ध ; सवाब : पुण्य ; गुनाह : पाप, अपराध ; दुनिया-ए-इश्क़ : प्रेम-संसार ; क़ायदा : नियम ; ऐतबार : विश्वास ; शख़्स : व्यक्ति ; वक़्ते-मर्ग़ : मृत्यु के समय ; सोज़ : स्वर-माधुर्य ; दरख्त : वृक्ष ; अज़ां : अज़ान ; सदा-ए-अंदलीब : कोयल की पुकार।
बहुत अच्छी गजल है !
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