पढ़ लिया लिख लिया सो गए
ख़्वाब में वो: ख़ुदा हो गए
कौन हैं लोग जो देस में
नफ़्रतों की फ़सल बो गए
मौत की खाई में जा गिरे
क़र्ज़ की राह पर जो गए
एक दहक़ान ही तो मरा
चार पैसे रखे रो गए
दाल दिल पर हुई बार यूं
गंदुमी ख़्वाब भी खो गए
बज़्म में तीरगी छा गई
आप ख़ुश हैं कि हम तो गए
बंट रही थी नियाज़े-करम
है गवारा जिन्हें वो गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नफ़्रतों: घृणाओं ; क़र्ज़: ऋण ; दहक़ान: कृषक ; गंदुमी: गेहूं के वर्ण वाले ; बज़्म : सभा, गोष्ठी ; तीरगी : अंधकार ;
नियाज़े-करम : मान्यता पूरी होने पर बांटी जाने वाली भिक्षा, भंडारा; गवारा : स्वीकार ।
ख़्वाब में वो: ख़ुदा हो गए
कौन हैं लोग जो देस में
नफ़्रतों की फ़सल बो गए
मौत की खाई में जा गिरे
क़र्ज़ की राह पर जो गए
एक दहक़ान ही तो मरा
चार पैसे रखे रो गए
दाल दिल पर हुई बार यूं
गंदुमी ख़्वाब भी खो गए
बज़्म में तीरगी छा गई
आप ख़ुश हैं कि हम तो गए
बंट रही थी नियाज़े-करम
है गवारा जिन्हें वो गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नफ़्रतों: घृणाओं ; क़र्ज़: ऋण ; दहक़ान: कृषक ; गंदुमी: गेहूं के वर्ण वाले ; बज़्म : सभा, गोष्ठी ; तीरगी : अंधकार ;
नियाज़े-करम : मान्यता पूरी होने पर बांटी जाने वाली भिक्षा, भंडारा; गवारा : स्वीकार ।
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