फूलों के शहर में दीवाने कांटों में गुज़ारा करते हैं
दिल हार के जीता करते हैं जग जीत के हारा करते हैं
हम अह् ले-सुख़न हर क़ीमत पर करते हैं अदा हक़ जीने का
हर वक़्त बदलती दुनिया की तस्वीर संवारा करते हैं
कहते हैं कि वो: ही ख़ालिक़ हैं तख़्लीक़ करेंगे जन्नत की
हालात मगर इस गुलशन के कुछ और इशारा करते हैं
हर मौसम से लड़ते आए चे बर्फ़ जली चे आग जमी
वैसे भी गुज़ारा करते थे ऐसे भी गुज़ारा करते हैं
हम जिस मौसम के आशिक़ हैं वो भी बस आने वाला है
ऐ बादे-सबा ! तेरे संग हम भी तो राह निहारा करते हैं
इक उम्र मिली है ख़ुश रह कर दो-चार घड़ी जी लेने दें
कमबख़्त फ़रिश्ते गलियों में दिन-रात इशारा करते हैं
तासीरे-लहू ये: कहती है रुकना है रग़ों में नामुमकिन
मंसूर सही लेकिन कब हम सौ ज़ुल्म गवारा करते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ :
दिल हार के जीता करते हैं जग जीत के हारा करते हैं
हम अह् ले-सुख़न हर क़ीमत पर करते हैं अदा हक़ जीने का
हर वक़्त बदलती दुनिया की तस्वीर संवारा करते हैं
कहते हैं कि वो: ही ख़ालिक़ हैं तख़्लीक़ करेंगे जन्नत की
हालात मगर इस गुलशन के कुछ और इशारा करते हैं
हर मौसम से लड़ते आए चे बर्फ़ जली चे आग जमी
वैसे भी गुज़ारा करते थे ऐसे भी गुज़ारा करते हैं
हम जिस मौसम के आशिक़ हैं वो भी बस आने वाला है
ऐ बादे-सबा ! तेरे संग हम भी तो राह निहारा करते हैं
इक उम्र मिली है ख़ुश रह कर दो-चार घड़ी जी लेने दें
कमबख़्त फ़रिश्ते गलियों में दिन-रात इशारा करते हैं
तासीरे-लहू ये: कहती है रुकना है रग़ों में नामुमकिन
मंसूर सही लेकिन कब हम सौ ज़ुल्म गवारा करते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ :
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