वो अपना अज़्म हम में ढूंढते हैं
ख़ुशी की राह ग़म में ढूंढते हैं
हमारी बदनसीबी हम अभी तक
वफ़ाओं को क़सम में ढूंढते हैं
बसे हैं जो रग़े-दिल में उन्हें हम
न जाने किस वहम में ढूंढते हैं
दिले-सहरा में सब्ज़े के निशां हम
किसी की चश्मे-नम में ढूंढते हैं
मिटाना चाहते हैं जो ख़ुदी को
वो ख़ुद्दारी सितम में ढूंढते हैं
मिला दुनिया-ए-फ़ानी में हमें जो
उसे मुल्के -अदम में ढूंढते हैं
ख़ुदा का घर हमें कोई दिखा दे
इनायत के भरम में ढूंढते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अज़्म: अस्मिता, महत्व; वफ़ाओं: निष्ठाओं; रग़े-दिल: हृदय के तंतु, वहम: संदेह; दिले-सहरा : मरुस्थल का हृदय; सब्ज़ा : हरीतिमा; निशां : चिह्न ; चश्मे-नम : द्रवित नयन ; ख़ुदी : आत्म-बोध; ख़ुद्दारी : स्वाभिमान; सितम : अत्याचार ; दुनिया-ए-फ़ानी : नश्वर संसार; मुल्के-अदम : ईश्वर का देश, परलोक; इनायत : कृपा ; भरम : भ्रम ।
ख़ुशी की राह ग़म में ढूंढते हैं
हमारी बदनसीबी हम अभी तक
वफ़ाओं को क़सम में ढूंढते हैं
बसे हैं जो रग़े-दिल में उन्हें हम
न जाने किस वहम में ढूंढते हैं
दिले-सहरा में सब्ज़े के निशां हम
किसी की चश्मे-नम में ढूंढते हैं
मिटाना चाहते हैं जो ख़ुदी को
वो ख़ुद्दारी सितम में ढूंढते हैं
मिला दुनिया-ए-फ़ानी में हमें जो
उसे मुल्के -अदम में ढूंढते हैं
ख़ुदा का घर हमें कोई दिखा दे
इनायत के भरम में ढूंढते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अज़्म: अस्मिता, महत्व; वफ़ाओं: निष्ठाओं; रग़े-दिल: हृदय के तंतु, वहम: संदेह; दिले-सहरा : मरुस्थल का हृदय; सब्ज़ा : हरीतिमा; निशां : चिह्न ; चश्मे-नम : द्रवित नयन ; ख़ुदी : आत्म-बोध; ख़ुद्दारी : स्वाभिमान; सितम : अत्याचार ; दुनिया-ए-फ़ानी : नश्वर संसार; मुल्के-अदम : ईश्वर का देश, परलोक; इनायत : कृपा ; भरम : भ्रम ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें