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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

...अपना नाम पढ़ !

अर्श  पर  लिक्खा  हुआ  पैग़ाम  पढ़
और  उसमें  दर्ज   अपना  नाम  पढ़

बात ऐसी कह कि  दिल पर जा  लगे
मीर  का    दीवान    सुब्हो-शाम  पढ़

एह्तरामे - शैख़    मंहगा    शौक़  है
रिंदे-नादां  !  बोतलों   के   दाम  पढ़

क़त्ले-नाहक़  वहशियत  है  कुफ़्र  है
ऐ  मुजाहिद ! ठीक  से  इस्लाम  पढ़

क्या  हुआ  चंगेज़ो-हिटलर  का  बता
जाबिरे-तारीख़    का     अंजाम   पढ़

शर्म  से    गड़   जाएगी    जम्हूरियत 
ताजदारों    के    नए     एहकाम  पढ़

जी, कहा हमने  'अनलहक़'  दें  सज़ा
ऐ  फ़रिश्ते !  ज़ोर  से   इल्ज़ाम  पढ़  !'

                                                                        (2016)

                                                                 -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अर्श:  आकाश, क्षितिज;  पैग़ाम : संदेश;  दर्ज : अंकित; मीर : हज़रत मीर तक़ी 'मीर', 19 वीं सदी के महान शायर; दीवान : रचना-संग्रह; एह्तरामे - शैख़ : मदिरा-विरोधी धर्म-भीरु का सम्मान; क़त्ले-नाहक़ : निरर्थक हत्या; वहशियत : उन्माद, पागलपन; कुफ़्र : ईश्वर-द्रोह; चंगेज़ो-हिटलर : चंगेज़ ख़ान, मंगोलिया का एक आततायी, आक्रमणकारी शासक और हिटलर, जर्मनी का नस्लवादी शासक; जाबिरे-तारीख़ : इतिहास-प्रसिद्ध अत्याचारी; अंजाम : परिणाम; जम्हूरियत : लोकतंत्र; ताजदारों : राष्ट्र-प्रमुखों ; एहकाम : आदेश; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि', इस्लाम के महान अद्वैतवादी दार्शनिक हज़रत मंसूर अ.स., का उद्घोष, जिन्हें उनके विचारों के कारण सूली पर चढ़ा दिया गया था; फ़रिश्ते : मृत्यु-दूत ; इल्ज़ाम : आरोप ।


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