लग गए शैख़ फिर से ख़ुराफ़ात में
सर मुसल्ले पे तो दिल ख़राबात में
ज़िंदगी का यक़ीं कीजिए मोहतरम
फ़ैसले लीजिए यूं न जज़्बात में
ख़ुदकुशी के मवाक़े बहुत आएंगे
कीजिए सब्र पहली मुलाक़ात में
वस्ल से हिज्र तक रुत बदलती गई
कट गई उम्र यूं चंद सदमात में
शुक्रिया दुश्मनों का अदा कीजिए
दे गए आपको तख़्त ख़ैरात में
कौन सी आग पी कर चले हो मियां
रख दिया दिल जला कर हसीं रात में
वक़्त है तो फ़राइज़ निभा लीजिए
दिल लगे ना लगे फिर मुनाजात में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़: धर्म-भीरु; ख़ुराफ़ात: उपद्रव; मुसल्ले: जा-ए-नमाज़,नमाज़ पढ़ने के लिए बिछाने वाला कपड़ा; ख़राबात: मदिरालय;
यक़ीं: विश्वास; मोहतरम : आदरणीय; जज़्बात: भावनाओं; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; मवाक़े : 'मौक़े' का बहुवचन, अवसर; सब्र: धैर्य; मुलाक़ात: भेंट; वस्ल : मिलन, हिज्र : विछोह; रुत : ऋतु; सदमात : आघातों; अदा : चुकाना, व्यक्त करना; तख़्त : राजासन; ख़ैरात: दान, भिक्षा; फ़राइज़: 'फ़र्ज़' का बहुव., कर्त्तव्य; मुनाजात : पूजा-पाठ, प्रार्थना ।
सर मुसल्ले पे तो दिल ख़राबात में
ज़िंदगी का यक़ीं कीजिए मोहतरम
फ़ैसले लीजिए यूं न जज़्बात में
ख़ुदकुशी के मवाक़े बहुत आएंगे
कीजिए सब्र पहली मुलाक़ात में
वस्ल से हिज्र तक रुत बदलती गई
कट गई उम्र यूं चंद सदमात में
शुक्रिया दुश्मनों का अदा कीजिए
दे गए आपको तख़्त ख़ैरात में
कौन सी आग पी कर चले हो मियां
रख दिया दिल जला कर हसीं रात में
वक़्त है तो फ़राइज़ निभा लीजिए
दिल लगे ना लगे फिर मुनाजात में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़: धर्म-भीरु; ख़ुराफ़ात: उपद्रव; मुसल्ले: जा-ए-नमाज़,नमाज़ पढ़ने के लिए बिछाने वाला कपड़ा; ख़राबात: मदिरालय;
यक़ीं: विश्वास; मोहतरम : आदरणीय; जज़्बात: भावनाओं; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; मवाक़े : 'मौक़े' का बहुवचन, अवसर; सब्र: धैर्य; मुलाक़ात: भेंट; वस्ल : मिलन, हिज्र : विछोह; रुत : ऋतु; सदमात : आघातों; अदा : चुकाना, व्यक्त करना; तख़्त : राजासन; ख़ैरात: दान, भिक्षा; फ़राइज़: 'फ़र्ज़' का बहुव., कर्त्तव्य; मुनाजात : पूजा-पाठ, प्रार्थना ।
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