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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

चंद रौशन ख़याल

हम  जहां  पाएमाल  होते  हैं
दोस्तों  पर  सवाल   होते  हैं

हक़परस्ती   ज़मीर   ख़ुद्दारी
मुफ़लिसी  के  कमाल  होते  हैं

दिल  उन्हीं  का  बड़ा  मिला  हमको
जो  बहुत  तंगहाल  होते  हैं

रिंद  का  सब्र  तोड़ने  वाले
मौलवी  के  दलाल  होते  हैं

शाह  जम्हूर  को  नचाता  है
हम  महज़  इस्तेमाल  होते  हैं

आसमाने-अदब  पे  सैयारे
चंद  रौशन  ख़याल  होते  हैं

सर  झुकाना  जिन्हें  नहीं  आता
वो  ख़ुदी  की  मिसाल  होते  हैं  !

                                                                   (2016)

                                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: पाएमाल: पद-दलित; हक़परस्ती: न्याय-प्रियता; ज़मीर: विवेक; ख़ुद्दारी : स्वाभिमान;  मुफ़लिसी : वंचन, निर्धनता;  कमाल : चमत्कारिक गुण; तंगहाल : वंचित; रिंद: मदिरा-प्रेमी; मौलवी : इस्लाम के ज्ञाता, ब्राह्मण के समकक्ष; जम्हूर: लोकतंत्र;  महज़: केवल; इस्तेमाल : प्रयोग; आसमाने-अदब : साहित्य का आकाश; सैयारे: उपग्रह, धूमकेतु; चंद: कुछ; रौशन ख़याल: उज्ज्वल विचारों वाले; ख़ुदी: स्वाभिमान; मिसाल : उदाहरण ।

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