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शनिवार, 9 जनवरी 2016

मिले दाद मीर से ...

अपने     तसव्वुरात   को      आज़ाद   कीजिए
बेहतर  है    अब    ख़ुदी  पे    एतमाद  कीजिए

या  आप  कभी  बज़्म  की  क़िस्मत  संवारिए
या    ख़ास   मवाक़े   पे    हमें   याद   कीजिए

जम्हूरे-हिंद      आपकी      जागीर     हो  गया
जी   भर  के    लूट  खाइए    बर्बाद     कीजिए

मुमकिन  नहीं   मुदाव:-ए-ग़म   दोस्तियों  से
कुछ    कीमिय:-ए-कारगर    ईजाद   कीजिए

कहिए  वो  बात  जिस  पे  मिले  दाद  मीर  से
ग़ालिब  को    ग़ज़लगोई  में   उस्ताद  कीजिए

मिलती     नहीं     निजात    फ़िक्रे-रोज़गार  से
किस-किस  के  दर  पे  रोइए  फ़रयाद  कीजिए

अब  वक़्त  आ  गया  है  कि  हम  अलविदा  कहें
दिल   को    ग़िज़ा-ए-दर्द   से    फ़ौलाद   कीजिए  !

                                                                                      (2016)

                                                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: तसव्वुरात: कल्पनाएं, विचारों; ख़ुदी: स्वाभिमान,आत्म-बल; एतमाद: विश्वास; बज़्म: गोष्ठी; ख़ास मवाक़े: विशिष्ट अवसरों; जम्हूरे-हिंद : भारतीय लोकतंत्र, जागीर : अधिकृत क्षेत्र; मुमकिन: संभव; मुदाव:-ए-ग़म: दुःख का उपचार/ समाधान; कीमिय:-ए-कारगर: प्रभावी रसायन; ईजाद: आविष्कृत; दाद: सराहना; मीर : हज़रत मीर तक़ी 'मीर', हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब के पूर्ववर्त्ती महान उर्दू शायर; ग़ज़लगोई: ग़ज़ल-कथन/ लेखन; उस्ताद : गुरु; निजात: मुक्ति;  फ़िक्रे-रोज़गार: आजीविका की चिंता; दर: द्वार; फ़रयाद: निवेदन; अलविदा: अंतिम प्रणाम; ग़िज़ा-ए-दर्द :पीड़ा रूपी पौष्टिक तत्व/ विटामिन; फ़ौलाद: इस्पात ।

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