ईंट गारा कम सही घर के लिए
हम कभी तरसे नहीं ज़र के लिए
मुफ़लिसी की शान हमसे पूछिए
एक टोपी तक नहीं सर के लिए
ख़ुम्र से दिल भर गया है रिंद का
शैख़ हैं नाशाद साग़र के लिए
चंद क़तरे ही सही अब चश्म में
एक तोहफ़ा है समंदर के लिए
है हमारी भी दुआओं में असर
साथ रखिए रोज़े-महशर के लिए
हिंद से हम वादिए-सीन: तलक
दौड़ आए एक मंज़र के लिए
कर रहे हैं नक़्श हम क़ुत्बा यहां
ख़ुल्द में दीवार-ओ-दर के लिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़र: सोना, धन; मुफ़लिसी: निर्धनता; ख़ुम्र: मदिरा; रिंद: मदिरा-प्रेमी; शैख़: धर्म-भीरु; नाशाद: दुःखी, अप्रसन्न; साग़र : मदिरा-पात्र; चंद: कुछ; क़तरे : बूंदें; चश्म : नयन; तोहफ़ा : उपहार; रोज़े-महशर : प्रलय का दिन, न्याय का दिन; वादिए-सीन: : अरब में सीना की घाटी, जहां ईश्वर के प्रकट होने का मिथक है; मंज़र : दृश्य, ईश्वर के प्रकट होने का दृश्य; नक़्श: अंकित; क़ुत्बा : क़ब्र/समाधि पर मृतक के परिचय के लिए लगाया जाने वाला पत्थर।
हम कभी तरसे नहीं ज़र के लिए
मुफ़लिसी की शान हमसे पूछिए
एक टोपी तक नहीं सर के लिए
ख़ुम्र से दिल भर गया है रिंद का
शैख़ हैं नाशाद साग़र के लिए
चंद क़तरे ही सही अब चश्म में
एक तोहफ़ा है समंदर के लिए
है हमारी भी दुआओं में असर
साथ रखिए रोज़े-महशर के लिए
हिंद से हम वादिए-सीन: तलक
दौड़ आए एक मंज़र के लिए
कर रहे हैं नक़्श हम क़ुत्बा यहां
ख़ुल्द में दीवार-ओ-दर के लिए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़र: सोना, धन; मुफ़लिसी: निर्धनता; ख़ुम्र: मदिरा; रिंद: मदिरा-प्रेमी; शैख़: धर्म-भीरु; नाशाद: दुःखी, अप्रसन्न; साग़र : मदिरा-पात्र; चंद: कुछ; क़तरे : बूंदें; चश्म : नयन; तोहफ़ा : उपहार; रोज़े-महशर : प्रलय का दिन, न्याय का दिन; वादिए-सीन: : अरब में सीना की घाटी, जहां ईश्वर के प्रकट होने का मिथक है; मंज़र : दृश्य, ईश्वर के प्रकट होने का दृश्य; नक़्श: अंकित; क़ुत्बा : क़ब्र/समाधि पर मृतक के परिचय के लिए लगाया जाने वाला पत्थर।
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