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मंगलवार, 5 जनवरी 2016

फ़रिश्तों से दूर

लोग    जितना   ग़ुरूर   रखते  हैं
क्या  मुनासिब  शुऊर   रखते  हैं

एक  धेला  न  हो   कभी  घर  में
हम    ख़ुदी  तो    ज़ुरूर  रखते हैं

अस्र  अत्फ़ाल  पर  न  आ  जाए
घर   फ़रिश्तों  से   दूर  रखते  हैं

आप  ही    मुतमईं  नहीं    वरना
दिल तो  हम भी  हुज़ूर  रखते  हैं

आपको क्या ख़बर  कि  सीने  में
सिर्फ़  हम    कोहे-नूर   रखते  हैं

आप  तो    शाह  हैं,   सज़ा  दे  लें
गर       सुबूते-क़ुसूर     रखते  हैं

आएंगे      अर्शे-नुहुम     भी  तेरे
हौसला-ए-तुयूर           रखते  हैं  !

                                                                (2016)

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ग़ुरूर : अभिमान; मुनासिब : समुचित; शुऊर : संस्कार, शिष्टता; ख़ुदी : स्वाभिमान; अस्र : प्रभाव;  अत्फ़ाल : बच्चों; फ़रिश्तों : तथाकथित देवदूतों; मुतमईं : आश्वस्त; वरना : अन्यथा; हुज़ूर: श्रीमान, माननीय; कोहे-नूर: प्रकाश-पर्वत,विश्वविख्यात हीरा; गर: यदि ; सुबूते-क़ुसूर : अपराध का साक्ष्य; अर्शे-नुहुम: नवम आकाश, इस्लामी मिथक के अनुसार ख़ुदा का निवास, स्वर्ग; हौसला-ए-तुयूर : पक्षियों का साहस ।


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