हज़ार बार अक़ीदत का इम्तिहां देंगे
तू जिस तरह से कहे उस तरह से जां देंगे
नज़र उठाइए उम्मीदवार कितने हैं
कि एक दिल है इसे कब-किसे-कहां देंगे
तमाम रहबरां लंबी ज़ुबान रखते हैं
ज़मीं जो दे न सके क्या वो आस्मां देंगे
जहां जगह नहीं बैतुल ख़ला बनाने की
वो कह रहे हैं कि हर शख़्स को मकां देंगे
अवाम ढूंढ रहे हैं वतन के वुज़रा को
जो कह रहे थे उन्हें दौलते-जहां देंगे
नए मिज़ाज पुराने उसूल क्यूं मानें
नवा-ए-वक़्त को तरजीह नौजवां देंगे
जहां के दर्द ग़ज़ल में बयान तो कीजे
दुआ जनाब को दिन-रात बेज़ुबां देंगे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक़ीदत: आस्था; इम्तिहां:परीक्षा; उम्मीदवार:प्रत्याशी; रहबरां: नेतागण; लंबी ज़ुबान: अतिशयोक्ति करना; ज़मीं: भूमि;
आस्मां: आकाश;बैतुल ख़ला: शौचालय; शख़्स: व्यक्ति; मकां: भवन; अवाम:जन-साधारण; वुज़रा: मंत्रीगण; दौलते-जहां: संसार-भर का धन; मिज़ाज: स्वभाव; उसूल: सिद्धांत; नवा-ए-वक़्त: आधुनिक विचारधारा; तरजीह: प्राथमिकता; बयान: अभिव्यक्त; दुआ: शुभकामना; जनाब: श्रीमान; बेज़ुबां: जिनके पास बोलने की क्षमता न हो, मूक ।
तू जिस तरह से कहे उस तरह से जां देंगे
नज़र उठाइए उम्मीदवार कितने हैं
कि एक दिल है इसे कब-किसे-कहां देंगे
तमाम रहबरां लंबी ज़ुबान रखते हैं
ज़मीं जो दे न सके क्या वो आस्मां देंगे
जहां जगह नहीं बैतुल ख़ला बनाने की
वो कह रहे हैं कि हर शख़्स को मकां देंगे
अवाम ढूंढ रहे हैं वतन के वुज़रा को
जो कह रहे थे उन्हें दौलते-जहां देंगे
नए मिज़ाज पुराने उसूल क्यूं मानें
नवा-ए-वक़्त को तरजीह नौजवां देंगे
जहां के दर्द ग़ज़ल में बयान तो कीजे
दुआ जनाब को दिन-रात बेज़ुबां देंगे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक़ीदत: आस्था; इम्तिहां:परीक्षा; उम्मीदवार:प्रत्याशी; रहबरां: नेतागण; लंबी ज़ुबान: अतिशयोक्ति करना; ज़मीं: भूमि;
आस्मां: आकाश;बैतुल ख़ला: शौचालय; शख़्स: व्यक्ति; मकां: भवन; अवाम:जन-साधारण; वुज़रा: मंत्रीगण; दौलते-जहां: संसार-भर का धन; मिज़ाज: स्वभाव; उसूल: सिद्धांत; नवा-ए-वक़्त: आधुनिक विचारधारा; तरजीह: प्राथमिकता; बयान: अभिव्यक्त; दुआ: शुभकामना; जनाब: श्रीमान; बेज़ुबां: जिनके पास बोलने की क्षमता न हो, मूक ।
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