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शनिवार, 26 दिसंबर 2015

... झमेला बना दिया

काशी  को  कालिया  ने  कटैला  बना दिया
गंगो-जमन  के  रंग  को  मैला  बना  दिया

दर्ज़ी  को  दें  दुआएं  कि  हज्जाम  को  ईनाम
बदशक्ल  शाहे-वक़्त  को  छैला  बना  दिया

थाली  में  दाल  है  न  मुक़द्दर  में  मुर्ग़ीयां
हर  ज़ायक़ा  अना  ने  कसैला  बना  दिया

दिल्ली था  जिसका  नाम  उसे  ढूंढते  हैं  सब  
जम्हूरियत  ने  ख़ूब  झमेला  बना  दिया

ला'नत  है  रहबरों  के  सियासी  शऊर  पर
बज़्मे-सुख़न  को  जिसने  तबेला  बना  दिया

उस  ज़ह्र  की  दवा  न  मिली  क़ैस  को  कभी
जिसने  गुले-गुलाब  को  लैला  बना  दिया

है  दौरे-तरक़्क़ी  कि  तबाही  का  सिलसिला
जिसने  अठन्नियों  को  अधेला  बना  दिया !

                                                                                     (2015)

                                                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: काशी: वाराणसी; कालिया:कृष्ण-कथा में वर्णित कालिया नाग; कटैला: काला-कत्थई रंग का एक अर्द्ध-मूल्यवान रत्न; गंगो-जमन: गंगा-यमुना; हज्जाम: केश काटने वाला; बदशक्ल: कुरूप; शाहे-वक़्त: वर्त्तमान शासक; छैला: सजा-संवरा पुरुष; मुक़द्दर: भाग्य; ज़ायक़ा: स्वाद; अना: अहंकार; कसैला: कषाय; जम्हूरियत: लोकतंत्र; ला'नत: धिक्कार; रहबरों : नेताओं; सियासी: राजनैतिक; शऊर: विवेक; बज़्मे-सुख़न:सृजनकर्मियों  की गोष्ठी; तबेला: पशुओं को बांधने का स्थान; ज़ह्र:जहर, विष; क़ैस: लैला का प्रेमी, 'मजनूं';   गुले-गुलाब: गुलाब का फूल; लैला:मजनूं की प्रेमिका, काली रात, -के समानकृष्ण-वर्णी; दौरे-तरक़्क़ी : प्रगति /विकास का काल; तबाही: विध्वंस; सिलसिला: क्रम; अधेला: आधे पैसे का सिक्का, अब अप्रचलित ।

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