मेरे पास भी कभी वक़्त था किसी मरहले पे ठहर गया
तेरा ख़्वाब था मेरा हमसफ़र मेरी बेख़ुदी से बिखर गया
मेरे दिल में भी कई ज़ख़्म हैं मैं कहूं किसी से तो क्या कहूं
मेरा दिलनशीं जो रहा कभी वो जगह से अपनी उतर गया
मेरे ख़्वाब भी तो कमाल हैं रहे पेश पेश नसीब से
शबे-हिज्र कोई लिपट गया शबे-वस्ल कोई मुकर गया
कभी दिल कहीं पे अटक गया कहीं चश्म ही धुंधला गई
कभी ज़ेह्न जो गया हाथ से तो मेरी दुआ का असर गया
मैं खड़ा हूं ऐसे मक़ाम पर जहां ताजो-तख़्त अहम नहीं
किसी ख़ास शै का मलाल क्या जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो तरह तरह की अलामतें वो तरह तरह के सुकूं-ओ-ग़म
हुई मुझपे इतनी नियामतें मैं ख़ुदा के नाम से डर गया
हुआ पीर से जो मैं रू-ब-रू मैंने घर ख़ुशी से जला लिया
मुझे मिल गया मेरा रास्ता मैं बिखर गया तो संवर गया !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मरहले: पड़ाव; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति; दिलनशीं: हृदय में विराजित; कमाल:विशिष्ट; पेश -पेश:आगे-आगे; नसीब: भाग्य; शबे-हिज्र: विरह-निशा; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; ज़ेह्न: मस्तिष्क, विवेक; मक़ाम: विशिष्ट स्थान; ताजो-तख़्त: मुकुट और राजासन; अहम: महत्वपूर्ण; शै:वस्तु, व्यक्ति; मलाल: खेद; अलामतें:समस्याएं, कठिनाइयां; सुकूं-ओ-ग़म: संतोष और दुःख; नियामतें: (ईश्वरीय) कृपाएं; पीर: गुरु; रू-ब-रू:समक्ष ।
तेरा ख़्वाब था मेरा हमसफ़र मेरी बेख़ुदी से बिखर गया
मेरे दिल में भी कई ज़ख़्म हैं मैं कहूं किसी से तो क्या कहूं
मेरा दिलनशीं जो रहा कभी वो जगह से अपनी उतर गया
मेरे ख़्वाब भी तो कमाल हैं रहे पेश पेश नसीब से
शबे-हिज्र कोई लिपट गया शबे-वस्ल कोई मुकर गया
कभी दिल कहीं पे अटक गया कहीं चश्म ही धुंधला गई
कभी ज़ेह्न जो गया हाथ से तो मेरी दुआ का असर गया
मैं खड़ा हूं ऐसे मक़ाम पर जहां ताजो-तख़्त अहम नहीं
किसी ख़ास शै का मलाल क्या जो गुज़र गया सो गुज़र गया
वो तरह तरह की अलामतें वो तरह तरह के सुकूं-ओ-ग़म
हुई मुझपे इतनी नियामतें मैं ख़ुदा के नाम से डर गया
हुआ पीर से जो मैं रू-ब-रू मैंने घर ख़ुशी से जला लिया
मुझे मिल गया मेरा रास्ता मैं बिखर गया तो संवर गया !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मरहले: पड़ाव; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति; दिलनशीं: हृदय में विराजित; कमाल:विशिष्ट; पेश -पेश:आगे-आगे; नसीब: भाग्य; शबे-हिज्र: विरह-निशा; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; ज़ेह्न: मस्तिष्क, विवेक; मक़ाम: विशिष्ट स्थान; ताजो-तख़्त: मुकुट और राजासन; अहम: महत्वपूर्ण; शै:वस्तु, व्यक्ति; मलाल: खेद; अलामतें:समस्याएं, कठिनाइयां; सुकूं-ओ-ग़म: संतोष और दुःख; नियामतें: (ईश्वरीय) कृपाएं; पीर: गुरु; रू-ब-रू:समक्ष ।
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