हर वक़्त सर पे इश्क़ का साया सवार हो
तो ख़ाक आशिक़ों को फ़िक्रे-रोज़गार हो !
शीरीं निगाह से न देखिए हमें मियां
तलवार थामिए तो ज़रा धारदार हो
जो नफ़्रतों की आग लगाने में हैं महव
अल्लाह करे उनपे मुहब्बत की मार हो
कमतर ज़राए माश कहीं जुर्म नहीं हैं
क्यूं शायरे-ग़रीब यहां शर्मसार हो
मुफ़लिस थे हम तो आप गुज़ारा न कर सके
ले आइए रक़ीब जो सरमाय:दार हो
ऐ ताइरे-उमीद अभी अलविदा न कह
शायद यहीं नसीब में फ़स्ले-बहार हो
चलते हैं सैर करके देखते हैं अर्श की
शायद वहां हमारा कहीं इंतज़ार हो !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़ का साया: प्रेम का भूत; ख़ाक: व्यर्थ; फ़िक्रे-रोज़गार:आजीविका की चिंता; शीरीं निगाह: मीठी दृष्टि; नफ़्रतों:घृणाओं; महव: व्यस्त; कमतर:न्यून, हीनतर; ज़राए माश: आजीविका/आय के साधन; जुर्म: अपराध; शायरे-ग़रीब: निर्धन शायर, निर्धनों का शायर; शर्मसार: लज्जित, अपमानित; मुफ़लिस: धनहीन;
गुज़ारा: निर्वाह; रक़ीब: प्रतिद्वंद्वी; सरमाय:दार:पूंजीपति, समृद्ध; ताइरे-उमीद: आशाओं के पक्षी; अलविदा :अंतिम प्रणाम; नसीब:प्रारब्ध; फ़स्ले-बहार: पूर्ण बसंत; अर्श:आकाश।
तो ख़ाक आशिक़ों को फ़िक्रे-रोज़गार हो !
शीरीं निगाह से न देखिए हमें मियां
तलवार थामिए तो ज़रा धारदार हो
जो नफ़्रतों की आग लगाने में हैं महव
अल्लाह करे उनपे मुहब्बत की मार हो
कमतर ज़राए माश कहीं जुर्म नहीं हैं
क्यूं शायरे-ग़रीब यहां शर्मसार हो
मुफ़लिस थे हम तो आप गुज़ारा न कर सके
ले आइए रक़ीब जो सरमाय:दार हो
ऐ ताइरे-उमीद अभी अलविदा न कह
शायद यहीं नसीब में फ़स्ले-बहार हो
चलते हैं सैर करके देखते हैं अर्श की
शायद वहां हमारा कहीं इंतज़ार हो !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़ का साया: प्रेम का भूत; ख़ाक: व्यर्थ; फ़िक्रे-रोज़गार:आजीविका की चिंता; शीरीं निगाह: मीठी दृष्टि; नफ़्रतों:घृणाओं; महव: व्यस्त; कमतर:न्यून, हीनतर; ज़राए माश: आजीविका/आय के साधन; जुर्म: अपराध; शायरे-ग़रीब: निर्धन शायर, निर्धनों का शायर; शर्मसार: लज्जित, अपमानित; मुफ़लिस: धनहीन;
गुज़ारा: निर्वाह; रक़ीब: प्रतिद्वंद्वी; सरमाय:दार:पूंजीपति, समृद्ध; ताइरे-उमीद: आशाओं के पक्षी; अलविदा :अंतिम प्रणाम; नसीब:प्रारब्ध; फ़स्ले-बहार: पूर्ण बसंत; अर्श:आकाश।
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