गर ख़ुदा को क़रार आ जाए
ख़ुल्द में भी बहार आ जाए
ज़र्र: ज़र्र: हो उन्स से रौशन
वो सुब्ह एक बार आ जाए
चश्मे-जानां में ज़र्फ़ हो इतना
देखते ही ख़ुमार आ जाए
आपकी हर अदा मुबारक हो
दुश्मनों को भी प्यार आ जाए
यूं न कीजे निबाह यारों से
दोस्ती में दरार आ जाए
शाह की तो नीयत नहीं दिखती
अर्श से रोज़गार आ जाए
हाथ सर पर रखा करें मुहसिन
मुश्किलों में उतार आ जाए
पढ़ रहे हैं नमाज़ ग़ैरों की
काश ! अपनी पुकार आ जाए !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर: यदि; क़रार: आत्म-तुष्टि, संतोष का भाव; ख़ुल्द: स्वर्ग; ज़र्र: ज़र्र: : कण-कण; उन्स : स्नेह, आत्मीयता; रौशन: उज्ज्वल, प्रकाशित; चश्मे-जानां: प्रिय के चक्षु; ज़र्फ़: गहराई; ख़ुमार: उन्माद; अदा: भंगिमा; मुबारक : शुभ; दरार: संध; नीयत: प्रवृत्ति, रुचि; अर्श: आकाश; मुहसिन: कृपालु, अनुग्रही; नमाज़: यहां जनाज़े की नमाज़; ग़ैरों: दूसरों; पुकार: बुलावा, मृत्यु का निमंत्रण।
ख़ुल्द में भी बहार आ जाए
ज़र्र: ज़र्र: हो उन्स से रौशन
वो सुब्ह एक बार आ जाए
चश्मे-जानां में ज़र्फ़ हो इतना
देखते ही ख़ुमार आ जाए
आपकी हर अदा मुबारक हो
दुश्मनों को भी प्यार आ जाए
यूं न कीजे निबाह यारों से
दोस्ती में दरार आ जाए
शाह की तो नीयत नहीं दिखती
अर्श से रोज़गार आ जाए
हाथ सर पर रखा करें मुहसिन
मुश्किलों में उतार आ जाए
पढ़ रहे हैं नमाज़ ग़ैरों की
काश ! अपनी पुकार आ जाए !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर: यदि; क़रार: आत्म-तुष्टि, संतोष का भाव; ख़ुल्द: स्वर्ग; ज़र्र: ज़र्र: : कण-कण; उन्स : स्नेह, आत्मीयता; रौशन: उज्ज्वल, प्रकाशित; चश्मे-जानां: प्रिय के चक्षु; ज़र्फ़: गहराई; ख़ुमार: उन्माद; अदा: भंगिमा; मुबारक : शुभ; दरार: संध; नीयत: प्रवृत्ति, रुचि; अर्श: आकाश; मुहसिन: कृपालु, अनुग्रही; नमाज़: यहां जनाज़े की नमाज़; ग़ैरों: दूसरों; पुकार: बुलावा, मृत्यु का निमंत्रण।
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