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गुरुवार, 3 सितंबर 2015

मस्अल: अना का ...

एक  घर  हमारा  है  एक  घर  ख़ुदा  का  है
ख़ूब  सोच  कर  कहिए  कौन  दर  वफ़ा  का  है

आपकी  निगाहों  में  हम  हसीं  न  हों  लेकिन
बज़्म  में  दिवानों  की  क़ायदा  दुआ  का  है

आपके  फ़रेबों  में  कुछ  नया  नहीं  मोहसिन
आपके  मुरीदों  को   आपका  नशा-सा  है

आजकल  सियासत  में  ज़ोर  रहज़नों  का  है
इंतज़ार  रैयत  को  इक  नई  शुआ  का  है

मग़फ़िरत  अभी   अपना   मुद्द'आ  नहीं  यारों
दिल  अभी  धड़कता  है  और  कुछ  इरादा  है

क्या  ग़लत  है  गर  हमको  शौक़  है  बग़ावत  का
आपके  लिए  भी  तो  मस्अल:  अना  का  है

क्या  बताएं  यारों  को  हम  नमाज़  के  मा'नी
पांच  वक़्त  झुकते  हैं  हुक्म  मुस्तफ़ा  का  है !

                                                                                                (2015)

                                                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: दर: द्वार; वफ़ा:निष्ठा; हसीं: सुंदर, आकर्षक; बज़्म: सभा; दिवानों: प्रेमोन्मादियों; दुआ: शुभकामना; फ़रेबों : छल-कपट, षड्यंत्रों; मोहसिन: अनुग्रही; मुरीदों: भक्त जन, प्रशंसक; ज़ोर: बल, प्रभाव;  रहज़नों: मार्ग में लूटने वाले; रैयत: नागरिक समाज; शुआ: किरण; मग़फ़िरत: मोक्ष; मुद्द'आ: विषय; गर: यदि; बग़ावत: विद्रोह; मस्अल: : समस्या, प्रश्न; अना: अहंकार; मा'नी: अर्थ, संदर्भ; मुस्तफ़ा: हज़रत मुहम्मद साहब स.अ.व. की उपाधि, पवित्रात्मा।


1 टिप्पणी:

  1. क्या ग़लत है गर हमको शौक़ है बग़ावत का
    आपके लिए भी तो मस्अल: अना का है...

    'सलीब तय है' का पेमेन्ट किन्ही कारणों से नहीं हो पा रहा है..शीघ्र ही उसे पाने का पुनः प्रयास करूँगा...आपके बारे में कवर पर जो लिखा है...उसने दिलचस्पी को बढ़ा दिया है...मेरी दुआएं हैं ऐसे शख्स के लिए जोजद्दोजहद के बीच इतनी सुन्दर रचनायें लगातार दे रहा है...

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