ज़रा-सी ज़िंदगी ले आ
किसी दर से ख़ुशी ले आ
सियासत की दलीलों में
नफ़ासत की नमी ले आ
अना बाहर दिखा अपनी
मगर घर में कमी ले आ
अगर ग़ैरत बची हो तो
कहा था जो वही ले आ
किसी से क़र्ज़ ले कर भी
मिज़ाजे-मुफ़लिसी ले आ
मरीज़े-तीरगी है दिल
सफ़ूफ़े-चांदनी ले आ
ज़ईफ़ी ने सता डाला
कहीं से कमसिनी ले आ
ख़ुदा या शाह, जो है तू
इलाजे-बेबसी ले आ
मुजस्स्म नूर है गर तू
सबूते-रौशनी ले आ !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दलीलों: तर्कों; नफ़ासत: सुगढ़ता; अना: घमंड; ग़ैरत: स्वाभिमान; मिज़ाजे-मुफ़लिसी: अपरिग्रही प्रवृत्ति; मरीज़े-तीरगी: अंधकार / नकारात्मकता / अ-कृत्य कर्म का रोगी; सफ़ूफ़े-चांदनी: चांदनी का चूर्ण; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; कमसिनी: बाल्यावस्था; इलाजे-बेबसी: विवशता का उपचार; मुजस्स्म नूर: संपूर्ण/समग्र प्रकाश, ईश्वर; सबूते-रौशनी: प्रकाश का प्रमाण।
किसी दर से ख़ुशी ले आ
सियासत की दलीलों में
नफ़ासत की नमी ले आ
अना बाहर दिखा अपनी
मगर घर में कमी ले आ
अगर ग़ैरत बची हो तो
कहा था जो वही ले आ
किसी से क़र्ज़ ले कर भी
मिज़ाजे-मुफ़लिसी ले आ
मरीज़े-तीरगी है दिल
सफ़ूफ़े-चांदनी ले आ
ज़ईफ़ी ने सता डाला
कहीं से कमसिनी ले आ
ख़ुदा या शाह, जो है तू
इलाजे-बेबसी ले आ
मुजस्स्म नूर है गर तू
सबूते-रौशनी ले आ !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दलीलों: तर्कों; नफ़ासत: सुगढ़ता; अना: घमंड; ग़ैरत: स्वाभिमान; मिज़ाजे-मुफ़लिसी: अपरिग्रही प्रवृत्ति; मरीज़े-तीरगी: अंधकार / नकारात्मकता / अ-कृत्य कर्म का रोगी; सफ़ूफ़े-चांदनी: चांदनी का चूर्ण; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; कमसिनी: बाल्यावस्था; इलाजे-बेबसी: विवशता का उपचार; मुजस्स्म नूर: संपूर्ण/समग्र प्रकाश, ईश्वर; सबूते-रौशनी: प्रकाश का प्रमाण।
स्वप्निल जी अब आप एक किताब निकल ही दो...बहुत सुन्दर...एस युसुअल...
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