दर्द के पीछे दिल भी है
यह मस्ला मुश्किल भी है
कुछ हम ही दीवाने हैं
कुछ मौसम क़ातिल भी है
इश्क़ इदारा है ग़म का
ख़्वाबों की महफ़िल भी है
गिरदाबों में कश्ती है
पर आगे साहिल भी है
पांवों में ज़ंजीरें हैं
आंखों में मंज़िल भी है
दहक़ां की दुश्मन दुनिया
पुर्से में शामिल भी है
शाह निकम्मा नाकारा
और ज़रा बुज़दिल भी है
(यह शायर बेचारा-सा
पढ़ने के क़ाबिल भी है !)
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मस्ला: समस्या; क़ातिल: मनभावन (व्यंजना); इदारा: संस्थान; गिरदाब: भंवर; कश्ती: नौका;
साहिल: तट; दहक़ां: किसान; पुर्से: शोक-संवेदना; नाकारा: अकर्मण्य; बुज़दिल: कायर ।
यह मस्ला मुश्किल भी है
कुछ हम ही दीवाने हैं
कुछ मौसम क़ातिल भी है
इश्क़ इदारा है ग़म का
ख़्वाबों की महफ़िल भी है
गिरदाबों में कश्ती है
पर आगे साहिल भी है
पांवों में ज़ंजीरें हैं
आंखों में मंज़िल भी है
दहक़ां की दुश्मन दुनिया
पुर्से में शामिल भी है
शाह निकम्मा नाकारा
और ज़रा बुज़दिल भी है
(यह शायर बेचारा-सा
पढ़ने के क़ाबिल भी है !)
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मस्ला: समस्या; क़ातिल: मनभावन (व्यंजना); इदारा: संस्थान; गिरदाब: भंवर; कश्ती: नौका;
साहिल: तट; दहक़ां: किसान; पुर्से: शोक-संवेदना; नाकारा: अकर्मण्य; बुज़दिल: कायर ।
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