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मंगलवार, 10 मार्च 2015

हमारे बाद का मौसम !

किसी  के  दर्द  का  मौसम,  किसी  की  याद  का  मौसम
ग़मे-दुनिया  से      हैरां  है     दिले-नाशाद     का  मौसम

न   बुलबुल   के   तराने   हैं,   न   है   परवाज़  शाहीं  की
चमन  में  आ  गया  जैसे    किसी  सय्याद   का  मौसम

सियासत  की  नवाज़िश  ने  किसी  घर  को  नहीं  बख़्शा
कहीं  एहसान  की    बारिश,   कहीं    फ़र्याद  का   मौसम

हरइक   शै  नाचती  है    उंगलियों  पर    तिफ़्ले-नादां  के
कहां   इस  दौर  के   जलवे,  कहां    अज्दाद  का   मौसम

उधर   अज़हद  अमीरी   है,    इधर  हैं   रिज़्क़  के    लाले
मुबारक   हो    मुरीदे-शाह     को    अज़्दाद    का  मौसम

किसी  की  जान  ले  लें   या   किसी  का  घर  जला  डालें
मुआफ़िक़  है    तुम्हारी  फ़ौज  के   इफ़्साद  का   मौसम 

हम  अपनी  नस्ल  के  हक़  में  लड़ेंगे  आख़िरी  दम  तक
उमीदों   से     सजा   होगा     हमारे   बाद     का    मौसम !

                                                                                               (2015)

                                                                                       -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ग़मे-दुनिया: संसार का दुःख; हैरां: चकित; दिले-नाशाद: दुःखी हृदय; तराने: गीत; परवाज़: उड़ान; शाहीं: एक मिथकीय पक्षी; चमन: उपवन; सय्याद: बहेलिया; नवाज़िश: देन; एहसान: अनुग्रह; फ़र्याद: याचना; शै: अस्तित्वमान वस्तु; तिफ़्ले-नादां: अबोध शिशुओं; जलवे: प्रदर्शन, दिखावे; अज्दाद: बाप-दादे, पूर्वजों; अज़हद: अतिशय, अपार; रिज़्क़: दो समय का भोजन; लाले: अभाव; मुबारक: शुभ; मुरीदे-शाह: शासक के प्रशंसकों; अज़्दाद: विरोधाभासों, परस्पर विरोधी चीज़ों; मुआफ़िक़: अनुकूल; इफ़्साद: उपद्रवों; नस्ल: आगामी पीढ़ी; हक़: पक्ष ।

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